________________
स्थान-४/२/३१०
७५
[३१०] तमस्काय केचार नाम है । यथा-तम, तमस्काय, अंधकार ओर महांधकार । तमस्काय के चार नाम हैं लोकांधकार, लोकतमस, देवांधकार और देवतमस । तमस्काय के चार नाम हैं यथा-वातपरिध-वायु को रोकने के लिए अर्गला समान । वातपरिध क्षोभ-वायु को क्षुब्ध करने के लिए अर्गला समान । देवारण्य-देवताओं के छिपने का स्थान । देवव्यूह-जिस प्रकार मानव का सैन्यव्यूह में प्रवेश पाना कठिन हैं । उसी प्रकार देवों का तमस्काय में प्रवेश पाना कठिन हैं । तमस्काय से चार कल्प ढके हुए है-यथा-सौधर्म, ईशान, सन्तकुमार और माहेन्द्र ।
[३११] पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-संप्रगट प्रतिसेवी-सादु समुदाय में रहनेवाला एक साधु अगीतार्थ के समक्ष दोष सेवन करते है । प्रच्छन्नप्रतिसेवी-एक साधु प्रच्छन्न दोष सेवन करता है । प्रत्युत्पन्न नंदी-एक साधु वस्त्र या शिष्य के लाभ से आनन्द मनाता है । निःसरण नंदी-एक साधु गच्छ में से स्वयं के या शिष्य के निकलने से आनन्द मनाता हैं ।
सेनायें चार प्रकार की है । यथा-एक सेना शत्रु को जीतनेवाली हैं किन्तु हरानेवाली नहीं है । एक सेना हरानेवाली हैं किन्तु जीतनेवाली नहीं हैं । एक सेना शत्रुओं को जीतनेवाली भी हैं और हरानेवाली भी है । एक सेना शत्रुओं को न जीतनेवाली है और न हरानेवाली । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के हैं । यथा-एक साधु परीषहों को जीतनेवाला है किन्तु परीषहों को सर्वथा परास्त करनेवाला नहीं है । एक साधु परीषहों से हारनेवाला हैं किन्तु उन्हें जीतनेवाला नहीं है । एक साधु शैलक राजर्षि के समान परीषहों से हारनेवाला भी है और उन्हें जीतनेवाला भी हैं । एक साधु न परीषहों से हारनेवाला है और न उन्हें जीतनेवाला है । क्योंकि साधनाकाल में उसे परीषह आये ही नहीं ।
सेनायें चार प्रकार की हैं । यथा-एक सेना युद्ध के आरम्भ में भी शत्रु सेना को जीतती है और युद्ध के अंत में भी शत्रु सेना को जीतती हैं । एकसेना युद्ध के आरम्भ मे शत्रु सेना को जीतती है किन्तु युद्ध के अन्त में पराजित हो जाती हैं । एक सेना युद्ध के आरम्भ में पराजित होती हैं किन्तु युद्ध के अन्त में विजय प्राप्त करती हैं । एक सेना युद्ध के आरम्भ में भी और अन्त में भी पराजित होती हैं । इसी प्रकार परीषहों से विजय और पराजय प्रकार करनेवाले पुरुष वर्ग के चार भांगे हैं ।
[३१२] वक्र वस्तुएँ चार प्रकार की हैं । यथा- बांस की जड़ के समान वक्रता, धेटे के सींग के समान वक्रता, गोमूत्रिका के समान वक्रता, वांस की छाल के समान वक्रता । इसी प्रकार माया भी चार प्रकार की है । बांसकी जड़ के समान वक्रतावाली माया करनेवाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता हैं । धेटे के सींग के समान वक्रतावाली माया करनेवाला जीव मरक तिर्यचयोनि में उत्पन्न होता हैं । गोमूत्रिका के समान वक्रता वाली माया करनेवाला जीव मरकर मनुष्ययोनि में जन्म लेता है । बांस की छाल के समान वक्रता वाली माया करनेवाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता हैं ।
___स्तम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-शैलस्तम्भ, अस्थिस्तम्भ, दारुस्तम्भ और तिनिसलतास्तम्भ । इसी प्रकार मान चार प्रकार का हैं । यथा-शैलस्तम्भ समान, अस्थिरस्तम्भ समान, दारुस्तम्भ समान और तिनिसलतास्तम्भ समान । शैलस्तम्भ समान मान करनेवाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता हैं । अस्थिस्तम्भ समान मान करनेवाला जीव मरकर तिर्यंचयोनि