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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चार प्रकार के पुरुष कहे गए है । कोई अपने पाप की उदीरणा करता है किंतु दुसरे के पाप की उदीरणा नहीं करता । इस प्रकार चार भंग जानना । चार प्रकार के पुरुष कहे गए है यथा-कोई अपने पाप को शांत करता है दुसरो के पाप को शान्त नहीं करता । इसी तरह चौभंगी जानना ।
_चार प्रकार के पुरुष हैं, कोई स्वयं तो अभ्युत्थान आदि से दूसरों का सम्मान करते हैं परन्तु दूसरों के अभ्युत्थान से अपना सम्मान नहीं कराते हैं । इत्यादि-चौभंगी । इसी तरह कोई स्वयं वन्दन करता हैं किन्तु दूसरों से वन्दन नहीं कराता हैं । इसी तरह सत्कार, सम्मान, पूजा, वाचना, सूत्रार्थ ग्रहण करना, सूत्रार्थ पूछना, प्रश्न का उत्तर देना, आदि जानें ।
चार प्रकार पुरुष कहे गये हैं, यथा-कोई सूत्रधर होता हैं अर्थधर नहीं होता, कोई अर्थधर होता हैं, सूत्रधर नहीं होता । कोई सूत्रधर भी होता हैं और अर्थधर भी होता हैं, कोई सूत्रधर भी नहीं होता और अर्थधर भी नहीं होता
[२७०] असुरेन्द्र, असुकुमार-राज चमर के चार लोकपाल कहे गये है, यथा-सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । इसी तरह बलीन्द्र के भी सोम, यम, वैश्रमण और वरुण चार लोकपाल हैं । धरणेन्द्र के कालपाल, कोलपाल, शैलवाल और शंखपाल । इसी तरह भूतानन्द के कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शेलपाल नामक चार लोकपाल हैं । वेणुदेव के चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष । वेणुदाली के चित्र, विचित्र, विचित्रपक्ष और चित्रपक्ष । हरिकान्त के प्रभ, सुप्रभ, प्रभाकान्त और सुप्रभाकान्त । हरिस्सह के प्रभ. सुप्रभ, सुप्रभाकान्त
और प्रभाकान्त । अग्निशिख के तेज, तेजशिख, तेजस्कान्त और तेजप्रभ । अग्निमानव के तेज, तेजशिख, तेजप्रभ और तेजस्कान्त । पूर्णइन्द्र के रूप, रूपांश, रूपकान्त और रूपप्रभ । विशिष्ट इन्द्र के रूप, रूपांश, रूपप्रभ और रूपकान्त । जलकान्त इन्द्र के जल, जलरत, जलकान्त और जलप्रभ । जलप्रभ के जल, जलरत, जलप्रभ और जलकान्त | अमितगत के त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहगति और सिह विक्रमगति । अमितवाहन के त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहविक्रमगति सिंहगति और । वेलम्ब के काल, महाकाल, रिष्ट और अंजन | घोस के आवर्त्त, व्यावत, नंद्यावर्त और महानंद्यावर्त्त । महाघोषके आवर्त्त, व्यावत, महानन्द्यावर्त्त, और नन्द्यावर्त्त । शक्र के सोम, यम, वरुण, और वैश्रमण । ईशानेन्द्र के सोम, यम, वैश्रमण और वरुण । इस प्रकार एक के अन्तर से अच्युतेन्द्र तक चार-चार लोकपाल समझने चाहिए । वायुकुमार के लोकपाल चार प्रकार के हैं, यथा-काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन ।
[२७१] चार प्रकार के देव हैं, भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, विमानवासी । [२७२] चार प्रकार के प्रमाण हैं, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण, भावप्रमाण ।
[२७३] चार प्रधान दिक्कुमारियां कही गई हैं, रूप, रूपांशा, सुरूपा और रूपावती । चार प्रधान विद्युत्कुमारियां कही गई हैं, यथा-चित्रा, चित्रकनका, शतेरा और सौदामिनी ।
[२७४] देवेन्द्र, देवराज शक्र की मध्यमपरिषद् के देवों की चार पल्योपम की स्थिति कही गई हैं । देवेन्द्र देवराज ईशान की मध्यमपरिषद् की देवियां की चार पल्योपम की स्थिति कही गई हैं ।
[२७५] संसार चार प्रकार का हैं, द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भावसंसार । [२७६] चार प्रकार का दृष्टिवाद हैं, परिश्रम, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग ।