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स्थान-३/२/१६२
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भी परिषद् जानें ।
देवराज देवेन्द्र शक्र की तीन परिषद् कही गई हैं, यथा-समिता, चण्डा और जाया । इसी प्रकार अग्रमहिषी पर्यन्त चमरेन्द्र के समान तीन परिषद् कहना चाहिए । इसी तरह अच्युत के लोकपाल पर्यन्त तीन परिषद् समझनी चाहिए ।
[१६३] तीन याम कहे गये हैं, यथा-प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम । तीन यामों में आत्मा केवलि-प्ररूपित धर्म सुन सकता हैं, यथा-प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में । इसी तरह-यावत्-आत्मा तीन यामों में केवलज्ञान उत्पन्न करता हैं, यथा- प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में ।
तीन वय कही गई हैं, प्रथम वय, मध्यम वय और अन्तिम वय । इन तीनों वय में आत्मा केवलि-प्रज्ञप्त धर्म सुन पाता है, प्रथमवय, मध्यमवय और अन्तिमवय । केवलज्ञान उत्पन्न होने तक का कथन पहले के समान ही जानना ।
[१६४] बोधि तीन प्रकार की कही गई हैं । यथा-ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि । तीन प्रकार के बुद्ध कहे गये हैं, यथा-ज्ञानबुद्ध, दर्शनबुद्ध और चारित्रबुद्ध । इसी तरह तीन प्रकार का मोह और-तीन प्रकार के मूढ समझना ।
[१६५] प्रवज्या तीन प्रकार की कही गई है, यथा-इहलोकप्रतिबद्धा, परलोक प्रतिबद्धा, उभय-लोकप्रतिबद्धा ।
तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है, यथा-पुरतः प्रतिबद्धा, मार्गतः प्रतिबद्धा उभयतः प्रतिबद्धा । तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई हैं, व्यथा उत्पन्न कर दी जानेवाली दीक्षा, अन्यत्र ले जाकर दी जानेवाली दीक्षा, धर्मतत्व समझा कर दी जानेवाली दीक्षा ।
तीन प्रकार की प्रव्रज्या है, सद्गुरुओं की सेवा के लिए ली गई दीक्षा, आख्यानप्रव्रज्याधर्मदेशना के दियेजानेसे ली गई दीक्षा, संगार प्रव्रज्या-संकेत से ली गई दीक्षा ।
[१६६] तीन निर्ग्रन्थ नोसंज्ञोपयुक्त हैं, यथा-पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक ।
तीन निर्ग्रन्थ संज्ञ-नोसंज्ञोपयुक्त (संज्ञा और नोसंज्ञा दोनों से संयुक्त) कहे गये हैं । यथा-बकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील ।
[१६७] तीन प्रकार की शैक्ष-भूमि कही गई हैं, यथा-उत्कृष्ट छ: मास, मध्यम चार मास जघन्य सात रात-दिन ।
ती स्थविर भूमियां कही गई हैं, यथा-जातिस्थविर, सूत्रस्थविर और पर्यायस्थविर | साठ वर्ष की उम्रवाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर हैं, स्थांनांग समवायांग को जाननेवाला श्रमणनिर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर हैं, बीस वर्ष की दीक्षावाला श्रमणनिर्ग्रन्थ पर्यायस्थविर है ।
[१६८] तीन प्रकार के पुरुष कहे गये है । यथा, सुमना (हर्षयुक्त) दुर्मना (दुःख या द्वेषयुक्त) नो-सुमना-नो-दुर्मना (समभाव रखनेवाला)।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा- कितनेक किसी स्थान पर जाकर सुमना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर दुर्मना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर नो सुमनानो दुर्मना होते हैं ।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-कितनेक 'किसी स्थान पर जाता हूँ ऐसा मान कर सुमना होते हैं, कितनेक 'किसी स्थान पर जाता हूँ' ऐसा मान कर दुर्मना होते हैं, कितनेक