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स्थान-२/२/८०
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[८०] दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता हैं, यथा- वैक्रियसमुद्धातरूप आत्मस्वभाव से ‘अवधिज्ञानी' आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है और वैक्रिय-समुद्धात किये बिना ही आत्म-स्वभाव से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता हैं । (तात्पर्य यह है कि) अवधिज्ञानी वैक्रिय-समुद्धात करके या वैक्रिय-समुद्धात किये बिना ही अधोलोक को जानता है और देखता है । इसी तरह ऊध्वलोक को जानता और देखता है । इसी तरह परिपूर्णलोक की जानता और देखता हैं ।
दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है, यथा-वैक्रिय शरीर बनाकर आत्मा अधोलोक को जानता और देखता हैं और वैक्रिय शरीर बनाए बिना भी आत्मा अधोलोक को जानता और देखता हैं । अवधिज्ञानी वैक्रिय शरीर बनाकर अथवा बनाए बिना भी अधोलोक को जानता और देखता है । इसी तरह तिर्यक् लोक आदि आलापक समझना।
दो प्रकार से आत्मा शब्द सुनता है । यथा-देश रूप से आत्मा शब्द सुनता है । और सर्व रूप से भी आत्मा शब्द सुनता है । इसी तरह रूप देखता हैं । इसी तरह गंध सूंधता है । इसी तरह रसों का आस्वादन करता है इसी तरह स्पर्श का अनुभव करता है ।
दो प्रकार से आत्मा प्रकाश करता है, यथा- देश रूप से आत्मा प्रकाश करता है, सर्वरूप से भी आत्मा प्रकाश करता है । इसी तरह विशेष रुप से प्रकाश करता है । विशेष रुप से वैक्रिय करता है । परिचार मैथुन करता है । विशेष रूप से भाषा बोलता हैं । विशेष रूप से आहार करता है । विशेष रुप से परिणमन करता है । विशेष रुप से वेदन करता है । विशेष रुप से निर्जरा करता है । ये नव सूत्र देश और सर्व दो प्रकार से हैं ।
देव दो प्रकार से शब्द सुनता हैं, यथा- देव देश से भी शब्द सुनता हैं और सर्व से भी शब्द सुनता है-यावत-निर्जरा करता है ।
मरुत देव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा- एक शरीर वाले और दो शरीर वाले । इसी तरह किन्नर, किंपुरुष, गंधर्व, नागकुमार, सुवर्णकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार-ये भी एक शरीर और दो शरीर वाले समझने चाहिए ।
स्थान-२-उद्देशक-३ [८१] शब्द दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा- भाषा शब्द और नो-भाषा शब्द भाषा शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा-अक्षर सम्बद्ध और नो-अक्षर सम्बद्ध ।
नो भाषा शब्द दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-आतोध और नो-आतोद्य । आतोद्य शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा- तत और वितत, तत शब्द दो प्रकार का कहा गया है, यथा-घन और शुषिर । इसी तरह वितत शब्द भी दो प्रकार का जानना चाहिये ।
नो आतोद्य शब्द दो प्रकार के कहे गये है । भूषण शब्द और नो-भूषण शब्द । नोभूषण शब्द प्रकार का कहा गया है, यथा-ताल शब्द और लात-प्रहार का शब्द ।
शब्द की उत्पत्ति दो प्रकार से होती है, यथा- पुद्गलों के परस्पर मिलने से शब्द की उत्पत्ति होती है, पुद्गलों के भेद शब्द की उत्पत्ति होती है,
[८२] दो प्रकार से पुद्गल परस्पर सम्बद्ध होते हैं, यथा-स्वयं ही पुद्गल इकट्ठे हो जाते हैं, अथवा अन्य के द्वारा इकट्ठे किये जाते हैं । दो प्रकार से पुद्गल भिन्न भिन्न होते