________________
स्थान- ३/१/१३६
फूल वाले वृक्ष के समान ।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-नाम पुरुष, स्थापना पुरुष और द्रव्य पुरुष । तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा- ज्ञानपुरुष, दर्शनपुरुष और चारित्रपुरुष । तीन प्रकार पुरुष कहे गये हैं, यथा-वेदपुरुष, चिन्ह पुरुष और अभिलाप पुरुष । तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा- उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और जघन्य पुरुष उत्तम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-धर्म पुरुष, भोग पुरुष और कर्म पुरुष । धर्म पुरुष अर्हन्त देव हैं, भोग पुरुष चक्रवर्ती हैं, कर्म पुरुष वासुदेव हैं । मध्यम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-उग्र वंशी, भोग वंशी, और राजन्य वंशी । जघन्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा- दास, भृत्य और भागीदार ।
४१
[ १३७] मत्स्य (मच्छ) तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा अण्डे से उत्पन्न होने वाले, पोत से (बिना किसी आवरण के) पैदा होनेवाले, संमूर्छिम (संयोग के बिना ) स्वतः उत्पन्न होने वाले । अण्डज मत्स्य तीन प्रकार के हैं, यथा- स्त्री मत्स्य, पुरुष मत्स्य और नपुंसक मत्स्य । पोत मत्स्य तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक ।
पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा- अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । अण्डज पक्षी तीन प्रकार के हैं, यथा- स्त्री, पुरुष और नपुंसक । पोतज पक्षी तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक ।
इस अभिलापक से उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प का भी कथन करना चाहिए । [१३८] तीन प्रकार की स्त्रियां कही गई हैं, यथा-तिर्यंच योनिक स्त्रियां, मनुष्य योनिक स्त्रियां, देव- स्त्रियां । तिर्यंच स्त्रियां तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा- जलचर स्त्री, स्थलचर स्त्री, खेचर स्त्री । मनुष्य स्त्रियां तीन प्रकार की हैं, यथा- कर्मभूमि में पैदा होने वाली, अकर्मभूमि में पैदा होनेवाली, अन्तद्वीप में उत्पन्न होनेवाली ।
पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-तिर्यचयोनिक पुरुष, मनुष्ययोनिक पुरुष, देव पुरुष । तिर्यचयोनिक पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा- जलचर, स्थलचर और खेचर । मनुष्ययोनिक पुरुष तीन प्रकार के हैं, यथा-कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले, अकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले, अन्तर्द्विपों में पैदा होनेवाले ।
नपुंसक तीन प्रकार के हैं, नैरयिक नपुंसक, तिर्यंचयोनिक नपुंसक, मनुष्य नपुंसक । तिर्यंचयोनिक नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा- जलचर, स्थलचर और खेचर । मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा- कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्द्वीपिक ।
[१३९] तिर्यंच योनिक तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा- स्त्री, पुरुष और नपुंसक । [१४०] नारक जीवों की तीन लेश्याएं कही गई हैं, यथा- कृष्ण लेश्या, नील लेश्या
और कापोत लेश्या ।
असुरकुमारों की तीन अशुभ लेश्याए कही गई हैं, यथा-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या । इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की लेश्या समझना चाहिए । इसी प्रकार तेजस्काय और वायुकाय की लेश्य भी जाननी चाहिए । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चतुरिन्द्रियों के भी तीन श्या नारक जीवों के समान कही गई हैं ।