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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
करण तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-आरम्भकरण, संरम्भकरण और समारम्भकरण । यह अन्तर रहित वैमानिक पर्यन्त जानने चाहिए ।
[१३३] तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं, यथा-वह प्राणियों की हिंसा करता है, झूठ बोलता हैं, और तथारूप श्रमण-माहन को अप्रासुक अशन आहार, पान, खादिम तथा स्वादिम बहराता हैं, इन तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं । तीन कारणों से जीव दीर्घायु रूप कर्मों का बंध करते हैं, यथा-यदि वह प्राणियों की हिंसा नहीं करता है, झूठ नहीं बोलता हैं, तथारूप श्रमण-माहन को प्रासुक एषणीय अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम का दान करता हैं । इन तीन कारणों से जीव दीर्घायु रुप कर्म का बंध करते हैं ।
तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घायु रूप कर्म का बंध करते हैं । यथा- यदि वह प्राणियों की हिंसा करता हैं, झूठ बोलता है, तथारूप श्रमण-माहन की हीलना करके निन्दा करके, भर्त्सना करके, गर्दा करके और अपमान करके किसी प्रकार का अमनोज्ञ एवं अप्रीतिकर अशनादि देता हैं, इन तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घायुरूप कर्म का बंध करते हैं ।
तीन कारणों से जीव शुभ दीर्घायु रूप का बंध करते हैं । यथा-यदि वह प्राणियों की हिंसा नहीं करता हैं, झूठ नहीं बोलता है तथारूप श्रमण-माहन को वन्दना करके, नमस्कार करके, सत्कार करके, सन्मान करके, कल्याणरुप, मंगलरूप, देवरूप और ज्ञानरूप मानकर तथा सेवा-शुश्रूषा करके मनोज्ञ प्रीतिकर, अशन, पान, खादिम, स्वादिम का दान करता है, इन तीन कारणों से जीव शुभदीर्घायुरूप कर्म का बंध करते हैं।
[१३४] तीन गुप्तियाँ कही गई हैं,यथा-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । संयत मनुष्यों की तीन गुप्तियां कही गई हैं, यथा-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ।
तीन अगुप्तियां कही गई हैं, यथा-मन-अगुप्ति, वचन-अगुप्ति और काय-अगुप्ति, इसी प्रकार नारक-यावत्-स्तनितकुमारों की, पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिक, असंयत, मनुष्य और वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की तीन अगुप्तियां कही गई हैं।
तीन दण्ड कहे गये हैं, यथा-मन दण्ड, वचन दण्ड और काय दण्ड | नारकों के तीन दण्ड कहे गये हैं, यथा-मन दण्ड, वचन दण्ड और काय दण्ड । विकलेन्द्रियों को छोड़ कर वैमानिक पर्यन्त तीन दण्ड जानने चाहिए ।
[१३५] तीन प्रकार की गर्दा कही गई हैं, यथा-कुछ व्यक्ति मन से गर्दा करते हैं, कुछ व्यक्ति वचन से गर्दा करते हैं, कुछ व्यक्ति पाप कर्म नहीं करके काया द्वारा गर्दा करते हैं ।
अथवा गर्दा तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-कितनेक दीर्घकाल की गर्दा करते हैं, कितनेक थोड़े काल की गर्दा करते हैं, कितनेक पाप कर्म नहीं करने के लिए अपने शरीर को उनसे दूर रखते हैं अर्थात् पाप कर्म में प्रवृत्ति नहीं करना रूप गर्दा करते हैं ।
प्रत्याख्यान तीन प्रकार के हैं, यथा-कुछ व्युक्ति मन के द्वारा प्रत्याख्यान करते हैं, कुछ व्यक्ति वचन के द्वारा प्रत्याख्यान करते हैं, कुछ व्यक्ति काया के द्वारा प्रत्याख्यान करते हैं । गर्दा के कथन के समान प्रत्याख्यान के विषय में भी दो आलापक कहने चाहिए ।
[१३६] वृक्ष तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पत्रयुक्त, फलयुक्त और पुष्पयुक्त । इसी तरह तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं, यथा-पत्रवाले वृक्ष के समान, फल वाले वृक्ष के समान,