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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पार्श्वनाथ, दो तीर्थंकर पद्म के समान गौर (लाल) वर्ण के थे, यथा-पद्म प्रभ और वासुपुज्य । दो तीर्थङ्कर चन्द्र के समान गोर वर्ण शुक्ल वर्ण वाले थे, यथा-चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त ।
[११७] सत्यप्रवाद पूर्व की दो वस्तुएं कही गई हैं ।
[११८] पूर्वभाद्रपद नक्षत्र के दो तारे कहे गये हैं । उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दो तारे कहे गये हैं । इसी तरह पूर्वफाल्गुन और उत्तरफाल्गुन के भी दो दो तारे कहे गये हैं,
[११९] मनुष्य-क्षेत्र के अन्दर दो समुद्र हैं, यथा-लवण और कालोदधि समुद्र ।
[१२०] काम भोगों का त्याग नहीं करनेवाले दो चक्रवर्ती मरण-काल में मरकर नीचे सातवीं नरक-पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नामक नरकवास में नारकरूप से उत्पन्न हुए, उनके नाम ये है, यथा-सुभूम और ब्रह्मदत्त ।
[१२१]असुरेन्द्रों को छोड़कर भवनवासी देवों को किंचित् न्यून दो पल्योपम की स्थिति कही गई है । सौधर्म कल्प में देवताओं की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम की कही गई है । ईशान कल्प में देवताओं को उत्कृष्ट किचिंत् अधिक दो सागरोपम की स्थिति कही गई है । सनत्कुमार कल्प में देवों की जघन्य दो सागरोपम की स्थिति कही गई हैं । माहेन्द्र कल्प में देवों की जघन्य स्थिति किंचिंत् अधिक दो सागरोपम की कही गई हैं।
[१२२] दो देवलोक में देवियां कही गई हैं, यथा-सौधर्म और ईशान । [१२३] दो देवलोक में तेजोलेश्या वाले देव हैं, सौधर्म और ईशान ।
[१२४] दो देवलोक में देव कायपरिचारक (मनुष्य की तरह विषय सेवन करनेवाले) कहे गये हैं, यथा-सौधर्म और ईशान, दो देवलोक में देव स्पर्श-परिचारक कहे गये हैं, यथासनत्कुमार और माहेन्द्र । दो कल्प में देव रूप-परिचाकर कहे गये हैं, यथा-ब्रह्म लोक और लान्तक । दो कल्प में देव शब्द-परिचारक कहे गये हैं, यथा-महाशुक्र और सहस्रार । दो इन्द्र मनः परिचारक कहे गये हैं, यथा-प्राणत और अच्युत । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चारों कल्पों में देव मनः परिचाकर है परन्तु यहाँ द्विस्थान का अधिकार होने से “दो इंदा" ऐसा पद दिया हैं,क्योकि इन चारों कल्पों में दो इन्द्र हैं ।
[१२५] जीव ने द्विस्थान निर्वर्तक (अथवा इन कथ्यमान स्थानों में जन्म लेकर उपार्जित अथवा इन दो स्थानो में जन्म लेने से निवृत्ति होनेवाले) पुद्गलों को पापकर्मरूप से एकत्रित किये है, एकत्रित करते हैं और एकत्रित करेंगे, वे इस प्रकार है, यथा-त्रसकाय निवर्तित और स्थावरकाय निवर्तित । इसी तरह उपचय किये, उपचय करते हैं और उपचय करेंगे, बांधे, बांधते हैं और बांधेगे, उदीरणा की, उदीरणा करते हैं और उदीरणा करेंगे, वेदन, वेदन करते हैं और वेदन करेंगे, निर्जरा की, निर्जरा करते हैं और निर्जरा करेंगे ।
[१२६] दो प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । दो प्रदेश में रहने वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । इस प्रकार-यावत-द्विगुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । स्थान-२-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(स्थान-३)
उद्देशक-१ [१२७] इन्द्र तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-नाम इन्द्र, स्थापना इन्द्र, द्रव्य इन्द्र ।