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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
हैं, यथा-स्वयं ही पुद्गल भिन्न होते हैं । अथवा अन्य द्वारा पुद्गल भिन्न किये जाते हैं ।
दो प्रकार से पुद्गल सड़ते हैं, यथा-स्वयं ही पुद्गल सड़ते हैं, अथवा अन्य के द्वारा सड़ाये जाते हैं । इसी तरह पुद्गल ऊपर गिरते हैं और इसी तरह पुद्गल नष्ट होते हैं ।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-भिन्न और अभिन्न ।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-नष्ट होनेवाले और नहीं नष्ट होने वाले । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-परमाणु पुद्गल और परमाणु से भिन्न स्कन्ध आदि ।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-सूक्ष्म और बादर ।। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा बद्धपार्श्व स्पृष्ट और नो बद्धपार्श्व स्पृष्ट ।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-पर्यायातीत अपर्यायातीत । अथवा कर्ण पुद्गल की तरह समस्त रूप से गृहीत और असमस्त रूप से गृहीत । ।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-जीव द्वारा गृहीत और अगृहीत । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-इष्ट और अनिष्ट । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-कान्त और अकान्त । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-प्रिय और अप्रिय । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-मनोज्ञ और अमनोज्ञ । पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-मनाम (मनःप्रिय) और अमनाम ।
[८३] शब्द दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-गृहीत और अगृहीत । इसी तरह इष्ट और अनिष्ट-यावत्-मनाम और अमनाम, शब्द जानने चाहिए ।
इसी तरह रूप, गंध, रस और स्पर्श-प्रत्येक में छ छ आलापक जानने चाहिये ।
[८४] आचार दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-ज्ञानाचार और नो-ज्ञानाचार । नो ज्ञानाचार दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-दर्शनाचार और नो-दर्शनाचार । नो-दर्शनाचार दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-चारित्राचार और नो चारित्राचार । नो चारित्राचार दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-तपाचार और वीर्याचार ।
प्रतिमाएं (प्रतिज्ञाएं) दो कही गई हैं, यथा-समाधि प्रतिमा और उपधान प्रतिमा, प्रतिमाएं दो कहीं गई हैं, यथा-विवेक प्रतिमा और व्युत्सर्ग प्रतिमा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-भद्रा और सुभद्रा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-महाभद्र और सर्वतोभद्र । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-लघुमोकप्रतिमा और महती मोकप्रतिमा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथायवमध्यचन्द्र प्रतिमा और वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा ।
सामायिक दो प्रकार की हैं, यथा-आगार सामायिक । अनगार सामायिक ।
[८५] दो प्रकार के जीवों का जन्म उपपात कहलाता है, देवों और नैरयिकों का । दो प्रकार के जीवों का मरना उद्धर्तन कहलाता हैं, नैरयिकों का और भवनवासी देवों का । दो प्रकार के जीवों का मरना च्यवन कहलाता है, ज्योतिष्कों का और वैमानिकों का ।
दो प्रकार के जीवों की गर्भ में उत्पत्ति होती है, यथा-मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों की । दो प्रकार के जीव गर्भ में रहे हुए आहार करते हैं, मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय । दो प्रकार के जीव गर्भ में वृद्धि पाते हैं, यथा-मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच ।
इसी प्रकार दो प्रकार के जीव गर्भ मे अपचय पाते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ में