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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
जला १०२ दो क्षीरोदा १०३ दो सिंह स्त्रोता १०४ दो अन्तोवाहिनी १०५ दो उर्मिमालिनी १०६ दो फेनमालिनी १०७ दो गंभीर मालिनी ।
१०८ दो कच्छ १०९ दो सुकच्छ ११० दो महाकच्छ १११ दो कच्छकान्ती ११२ दो आवर्त ११३ दो मंगलावर्त ११४ दो पुष्कलावर्त ११५ दो पुष्कलावती ११६ दो वत्स ११७ दो सुवत्स ११८ दो महावत्स ११९ दो वत्सावती १२० दो रम्य १२१ दो रम्यक् १२२ दो रमणिक १२३ दो मंगलावती १२४ दो पद्म १२५ दो सुपद्म १२७ दो पद्मावती १२८ दो शंख १२९ दो कुमुद १३० दो नलिन १३१ दो नलिनावती १३२ दो वप्र १३३ दो सुवप्र १३४ दो महावप्र १३५ दो वप्रावती १३६ दो वल्गु १३७ दो सुवल्गु १३८ दो गंधिल १३९ दो गंधिलावती ये चक्रवर्ती विजय है ।
चक्रवर्ती विजय-राजधानियाँ १४० दो क्षेमा १४१ दो क्षेमपुरी १४२ दो रिटा १४३ दो रिष्टपुरी १४४ दो खङ्गी १४५ दो मंजुषा १४६ दो औषधि १४७ दो पौंडरिकिणी १४८ दो सुसीमा १४९ दो कुंडला १५० दो अपराजिता १५१ दो प्रभंकरा १५२ दो अंकावती १५३ दो पद्मावती १५४ दो शुभा १५५ दो रत्नसंचया १५६ दो अश्वपुरा १५७ दो सिंहपुरा १५८ दो महापुरा १५९ दो विजयपुरा १६० दो अपराजिता १६१ दो अपरा १६२ दो अशोका १६३ दो वीतशोका १६४ दो विजया १६५ दो वैजयंती १६६ दो जयंती १६७ दो अपराजिता १६८ दो चक्रपुरा १६९ दो खड्गपुरा १७० दो अवध्या १७१ दो अयोध्या
मेरु पर्वत पर वन खंड १७२ दो भद्रशाल वन, १७३ दो नंदन वन, १७४ दो सौमनस वन, १७५ दो पंडक वन मेरु पर्वत पर शिला १७६ दो पांडुकंबल शिला, १७७ दो अतिकंबल शिला १७८ दो रक्तकंबल शिला, १७९ दो अतिरक्तकंबल शिला, १८० दो मेरु पर्वत, १८१ दो मेरु पर्वत की चूलिका है ।
९७] कालोदधि समुद्र की वेदिका दो कोस की ऊंचाई वाली है । पुष्करखर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र हैं जो अति, तुल्य, हैं-यावत् नामभरत और ऐखत । इसी तरह-यावत्-दो कुरु है, यथा-देव कुरु और उत्तर कुरु । वहाँ दो विशाल महाद्रुम हैं, उनके नाम-कूटशाल्मली और पद्मवृक्ष देव गरुड़ वेणुदेव और पद्म - यावत्वहाँ मनुष्य छ प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं ।
पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में और मेरु पर्वत के उत्तर दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गये हैं इत्यादि पूर्ववत् । विशेषता यह हैं कि वहाँ कूटशाल्मली और महापद्म वृक्ष है और देव गरुड़ (वेणुदेव) और पुण्डरिक हैं । पुष्करद्वीपार्ध में दो भरत, दो ऐवत-यावत्-दो मेरु और दो मेरु चूलिकाएं हैं । पुरष्करखर द्वीप की वेदिका दो कोस की ऊंची कही गई हैं । सब द्वीप-समुद्रों की वेदिकाएं दो कोस की ऊंचाई वाली कही गई हैं।
[९८] असुरकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा- चमर और बलि । नागकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-धरन और भूतानन्द । सुवर्णकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, वेणुदेव और वेणुदाली । विद्युत्कुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-हरि और हरिसह । अग्रिकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथाअग्निशिख और अग्निमाणव । द्वीपकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-पूर्ण और वाशिष्ठ । उदधिकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-जलकान्त और जलप्रभ । दिक्कुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-अमितगति और अमितवाहन वायुकुमारेन्द्र दो कहे गये हैं, यथा-वेलम्ब और प्रभंजन । स्तनितकुमारेन्द्र दो