Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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शिक्षाएँ
इस सूत्र के अध्ययन से मुमुक्षुजनों को ऐसी अनेक अमूल्य शिक्षाओं का लाभ हो सकता है, जिनके द्वारा उनका जीवन आदर्श रूप हो जाता है। जैसे१. धैर्य और दृढ़ विश्वास गजसुकुमाल की तरह होना चाहिए।
सहनशक्ति अर्जुनमाली के समान होनी चाहिए। श्रावक लोगों को सुदर्शन श्रमणोपासक का अनुकरण करना चाहिए, जिसका आत्मतेज देव भी सहन नहीं कर सका। धर्मविश्वास कृष्ण वासुदेव की भांति होना चाहिए। प्रश्नोत्तर की शैली अतिमुक्त कुमार के समान होनी चाहिए। त्यागवृत्ति कृष्ण वासुदेव की आठ अग्रमहिषियों की भांति होनी चाहिए। तपश्चर्या महाराजा श्रेणिक की दस देवियों की भांति होनी चाहिए, जो आठवें वर्ग में सविस्तार वर्णित है। इस प्रकार यह शास्त्र अनेक शिक्षाओं से अलंकृत हो रहा है। जो भव्य प्राणी उक्त शिक्षाओं
को धारण कर लेता है उसका मनुष्य-जीवन सार्थक और जनता में आदर्श रूप बन जाता है। उपकार
___ यद्यपि इस शास्त्र के समुचित सम्पादन में मैं असमर्थ थी तथापि पूज्य गुरुदेव अनुयोगप्रवर्तक श्री कन्हैयालालजी (कमलमुनिजी) म.सा. की पावन कृपा से, शास्त्रविशारद माणेककुंवरजी म.सा. के शुभाशीष से, पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल की आग्रहपूरित प्रेरणा से, परम पूज्य आगम-प्रभाकर आत्मारामजी म.सा. की श्रुतसहायता और भगिनी साध्वी बा. ब्र. मुक्तिप्रभाजी म.सा., बा.ब्र. दर्शनप्रभाजी म.सा. और बा.ब्र. अनुपमाजी के परम सहयोग से श्रमणसंघ के युवाचार्य विद्वद्रत्न मुनि श्री मधुकरजी म.सा. द्वारा आयोजित इस पवित्र अनुष्ठान में किंचित् योगदान करने में समर्थ हो गई।
अतः इन सर्व महाविभूतियों और महानुभावों की महती कृपा, भावना, प्रेरणा से पावन बनी हुई मैं मेरे और प्रिय पाठकों के संसार का अंत करनेवाली पावनी दशा की अभ्यर्थना के साथ विराम लेती हूँ और प्रमादवश बुद्धिदोष या अज्ञानवश हुई त्रुटियों हेतु श्रुतदेवताओं की और सर्वश्रुतधरों की क्षमा चाहती हूँ।
अर्हद्वत्सला साध्वी दिव्यप्रभा
१९८०
जैन उपाश्रय जमनादास मेहता मार्ग, तीनबत्ती
वालकेश्वर-६