Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 102 भाचारांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध अनेकचित्त पुरुष अतिलोभी बनकर कितनी बड़ी असम्भव इच्छा करता है, इसके लिए शास्त्रकार चलनी का दृष्टान्त देकर समझाते हैं कि वह चलनी को जल से भरना चाहता है, अर्थात् चलनी रूप महातृष्णा को धनरूपी जल से भरना चाहता है / वह अपने तृष्णा के खप्पर को भरने हेतु दूसरे प्राणियों का वध करता है, दूसरों को शारीरिक, मानसिक संताप देता है, द्विपद (दास-दासी, नौकर-चाकर आदि), चतुष्पद (चौपाये जानवरों) का संग्रह करता है, इतना ही नहीं, वह अपार लोभ से उन्मत्त होकर सारे जनपद या नागरिकों का संहार करने पर उतारू हो जाता है, उन्हें नाना प्रकार से यातनाएँ देने को उद्यत हो जाता है, अनेक जनपदों को जीतकर अपने अधिकार में कर लेता है / यह है-तृष्णाकुल मनुष्य की अनेक चित्तता किंवा व्याकुलता का नमूना। संयम में समुत्थान 119. आसे वित्ता एयम8 इच्चेवेगे समुट्टिता।। तम्हा तं बिइयं नासेवते णिस्सारं पासिय णाणी / उववायं चयणं गच्चा अणण्णं चर माहणे। से ण छणे, न छणावए, छणंतं णाणुजाणति / २णिविद दि अरते पयासु अणोमदंसी जिसणे पावेहि कम्महि / 120. कोधादिमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे णिरयं महंतं / तम्हा हि वीरे विरते बधातो, छिदिज्ज सोतं लभूयगामी // 8 // 126. गंथं परिणाय इहऽज्ज' वीरे, सोयं परिण्णाय चरेज्ज दंते। उम्मुग्ग" लधु इह माणवेहि, णो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि // 9 // त्ति बेमि। ॥बीओ उद्देसओ सम्मत्तो।। 1. 'बिइयं नो सेवते', 'बीयं नो सेवे', 'वितियं नासेवए'-ये पाठान्तर मिलते हैं। चूर्णिकार इस वाक्य का अर्थ करते हैं-"द्वितीयं मृषावादमयमं वा नासेवते"-दूसरे मृषावाद का या असंयम (पाप) का सेवन नहीं करता। 2. णिग्विज्ज' पाठ भी मिलता है, जिसका अर्थ है-विरक्त होकर / 3. 'पावेसु कम्मेसु' पाठ चूणि में है, जिसका अर्थ है-'पावं कोहादिकसाया तेसु'–पाप हैं क्रोधादि कषाय, उनमें / 4. चणि में इसके स्थान पर छिदिज्ज सोतं गहु भूतगाम' पाठ मिलता है। उत्तरार्ध का अर्थ यों है ईर्यासमिति प्रादि से युक्त साधक 14 प्रकार के भूतग्राम (प्राणि-समूह) का छेदन न करे। 5. 'इहज' के स्थान पर 'इह वज्ज' एवं 'इहेज्ज' पाठ भी मिलते हैं / 'इह अज्ज' का अर्थ चणि कार ने किया है- "इह पक्यणे, अजेव मा चिरा"- इस प्रवचन में आज हो-बिलकुल विलम्ब किये बिना प्रवृत्त हो जाओ। 6. 'सोगं', 'सोतं' पाठान्तर भी हैं, 'सोगं' का अर्थ शोक है। 7. 'उम्मुग्ग' के स्थान पर 'उम्मग्ग' भी मिलता है, जिसका अर्थ होता है-उन्मज्जन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org