Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 222 आचारांग सूत्र---द्वितीय श्रतस्कन्ध बीओ उद्देसओ द्वितीय उद्देशक सावध-निरवद्य भाषा-विवेक 533. से भिक्खू वा 2 जहा वेगतियाई रूवाइं पासेज्जा तहा वि ताइं गो एवं वदेज्जा, तंजहा-गंडी गंडी ति वा, कुट्ठी कुट्ठी ति वा, जाव महुमेहणी ति वा, हच्छिण्णं' हत्थच्छिण्णे ति वा, एवं पादच्छिण्णे ति वा, कण्णच्छिण्णे ति वा, नक्कच्छिण्णे ति वा, उच्छिण्णे ति वा। जे यावऽण्णे तहप्पंगारा' एतप्पगाराहि भासाहि बुइया 22 कुष्पंति माणवा ते यावि तहप्पगारा तहप्पगाराहि भासाहि अभिकंख णो भासेज्जा। 534. से भिक्खू वा 2 जहा वेगतियाई रुवाई पासेज्जा तहा वि ताई एवं वदेज्जा, तंजहा-ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसी तेयंसी ति वा, वच्चंसी वच्चंसी ति वा, जसंसी जसंसी ति वा, अभिरूवं अभिरूवे ति बा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणिज्ज दरिसणीए ति वा। जे यावऽण्णे तहप्पगारा एयप्पगाराहि भासाहि बुइया 2 णो कुप्पंति माणवा ते यावि तहप्पगारा एतप्पगाराहि भासाहि अभिकंख भासेज्जा। 535. से भिक्खू वा 2 जहा वेगतियाई रूवाइं पासेज्जा, तंजहा-वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा तहा वि ताई णो एवं वदेज्जा, तं [जहा]-सुकडे ति वा, सुठुकडे ति वा साहुकडे इ वा, कल्लाणं ति वा, करणिज्जे इ वा। एयप्पगारं भासं सावज्ज जाव णो भासेज्जा। 536. से भिक्खू वा 2 जहा वेगइयाई रूवाई पासेज्जा, तं [जहा-] वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा तहा वि ताई एवं वदेज्जा, तंजहा-आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिलवे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा / एतप्पगारं भासं असावज्ज जाव भासेज्जा / 1. किसी प्रति में हत्थच्छिण्णं हच्छिणेति' इत्यादि पाठ के बदले 'हच्छिणं हत्यच्छिणेति' के बाद 'एवं पाद-नक्क-कण्ण-उट्ठा' पाठ मिलता है। निशीथसूत्र के चतुर्दश अध्ययन में भी 'हत्यच्छिण्णस्स पायच्छिण्णस्स, नासच्छिण्णस्स करणछिन्नस्स ओट्ठच्छिण्णस्स असक्कस्स न दे।।' पाठ मिलता है, तदनुसार यही क्रम संगत प्रतीत होता है, तथा सम्पूर्ण पाठ ही ठीक लगता है। 2. 'यावि तहप्पगारा' का भावार्थ वृत्तिकार के शब्दों में---'तथाऽन्ये च तथाप्रकाराः काण-कुण्टादयस्तद्विशेषणविशिष्टाभिर्वाग्भिरुक्ताः कुप्यन्ति मानवाः / ' अर्थात्-तथा दूसरे भी इस प्रकार के काने, कूबड़े, लले, लंगड़े आदि मानवों उन-उन विशेषणों से युक्त वचनों से कहने पर वे रुष्ट होते हैं / 3. यहां जाव शब्द से 'सावज्ज' से 'जो भासेज्जा' तक का सारा पाठ सू० 524 के अनुसार समझें / 4. यहाँ जाक शब्द से 'असावज्ज से लेकर 'भासेज्जा' तक का सारा पाठ सू० 525 के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org