Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 256 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध समस्त वस्त्रों सहित विहारादि-विधि-निषेध 582. से भिक्खू वा 2 गाहावतिकुलं पिंडवायपडियाए पविसिउकामे सव्वं चीवरमायाए गाहावतिकुलं पिंडवातपडियाए निक्समेज्ज वा पविसेज्ज वा, एवं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा गामाणुगाम वा दूइज्जेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा तिव्वदेसियं वा वास वासमाणं पेहाए, जहा पिंडेसणाए', णवरं सव्वं चीवरमायाए। 582. वह साधु या साध्वी, यदि गृहस्थ के घर में आहार-पानी के लिए जाना चाहे तो समस्त कपड़े (चीवर) साथ में लेकर उपाश्रय से निकले और गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करे। इसीप्रकार बस्ती से बाहर स्वाध्यायभूमि या शौचार्थ स्थंडिलभूमि में जाते समय एवं ग्रामानुग्राम विहार करते समय सभी वस्त्रों को साथ लेकर विचरण करे / यदि वह यह जाने कि दूर-दूर तक तीब्र वर्षा होती दिखाई दे रही है यावत् तिरछे उड़ने वाले सप्राणी एकत्रित होकर गिर रहे हैं, तो यह सब देखकर साधु वैसा ही आचरण करे, जैसा कि पिण्डैषणा-अध्ययन में बताया गया है। अन्तर इतना ही है कि वहां समस्त उपधि साथ में लेकर जाने का विधि-निषेध है, जबकि यहाँ केवल सभी वस्त्रों को लेकर जाने का विधि-निषेध है। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र द्वय में से प्रथम सूत्र में भिक्षा, स्वाध्याय, शौच एवं ग्रामानुग्राम विहार के लिए जाते-आते समय सभी वस्त्र साथ में लेकर जाने का विधान है, जबकि द्वितीय सूत्र में अत्यन्त वर्षा हो रही हो, कोहरा तेजी से पड़ रहा हो, आंधी या तूफान के कारण तेज 1. 'तिब्बदेसियं' से सम्बन्धित अपवाद के सम्बन्ध में चणिकार का मत-तिरुववेसितगादिसु ण कप्पति' वर्षा, आँधी, कोहरा, तूफान आदि में साधु को सब कपड़े लेकर विहारादि करना तो दूर रहा. स्थान से बाहर निकलना भी नहीं कल्पता। 2. संपूर्ण वस्त्र साथ में लेकर जाने के संदर्भ में तत्कालीन बौद्ध साहित्य का एक उल्लेख पठनीय है। एक भिक्ष अँधवन में चीवर छोड़कर गाँव में भिक्षा के लिये गया। चोर पीछे से चीवर को चुराकर ले गया / भिक्षु मैले चीवर वाला हो गया। तब तथागत के समक्ष यह प्रसंग आया तो तथागत ने कहा-एक ही बचे चीवर से गाँव में नहीं जाना चाहिए। आगे इसी प्रसंग में 5 कारणों से चीवर छोड़कर गाँव में जाने का विधान है-१. रोगी होता है, 2. वर्षा का लक्षण मालूम होता है, 3. या नदी पार गया होता है, 4. किवाड से रक्षित विहार होता है, 5. या कठिन आस्थित हो गया होता है। -विनयपिटक (महावग्ग 86 / 1-10287-88) 3. 'जहा पिंडेसणाए' का तात्पर्य है-जैसे पिडषणाऽध्ययन सूत्र 345 में वर्णन है, वह सब पाठ यहाँ से आगे समझ लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org