Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 386 पन्द्रहवाँ अध्ययन : सूत्र 766-68 तणं जोगोवगतेणं पाईणगामिणोए छायाए, वियत्ताए पोरुसीए, छट्ठणं भत्तणं अपाणएणं, एगं साडगमायाए चंदप्पभाए सिबियाए सहस्सवाहिणीयाए' सदेव-मणुया-ऽसुराए परिसाए समणिज्जमाणे 2 उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसस्स मज्झमझेणं निग्गच्छति, 2 [त्ता! जेणेब णातसंडें उज्जाणे तेणेव उवागच्छति, 2 {त्ता) ईसि रतणिप्पमाणं अच्छोप्पेणं भूमिभागेणं सणियं 2 चंदप्पमं सिबियं सहस्सवाहिणि ठवेति, सणियं 2 जाव ठवेत्ता सणियं 2 चंदप्पभातो सिबियातो सहस्सवाहिणीओ पच्चोतरति, २[त्ता] सणियं 2 पुरस्थाभिमुहे सीहासणे जिसीदति, 2 त्तिा आभरणालंकारं ओमुयति / ततो णं वेसमणे देबे जन्न पायपडिते समणस्स भगवतो महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं आभरणालंकारं पडिच्छति / ततो णं समण भगवं महावीरे दाहिण ण दाहिण वामेण वाम पंचमुट्टियं लोयं करेति / ततो णं सक्के देविदे देवराया समणस्स भगवतो महावीरस्स जन्न षायपडिते वइरामएणं थालेणं केसाई पडिच्छति, 2 [त्ता'अणुजाणेसि भंते !' त्ति कट्ट, खीरोदं सागरं साहरति / ततो गं समणे भगवं महावीरे दाहिणेण दाहिणं वामेण वाम पंचमुट्ठियं लोयं करेत्ता सिद्धाणं णमोक्कारं करेति, 2 [ताj सव्वं मे अकरणिज्ज पावं कम्मं ति कट्ट. सामाइयं चरित्तं पडिवज्जइ, सामाइयं चरित्त पडिवज्जित्ता देवपरिसं च मणुयपरिसं च आलेक्खचित्तभूतमिव ठवेति / 767. दिव्यो मणुस्सघोसो तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण / खिप्पामेव णिलुक्को जाहे पडिवज्जति चरित्त // 128 / / 768. पडिवज्जित्त चरित अहोणिसं सव्वपाणभूतहितं / साहठ्ठलोमपुलया पयता देवा णिसामेति // 126 // 766 उस काल और उस समय में, जबकि हेमन्त ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात् मार्गशीर्ष मास का कृष्णपक्ष था। उस मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के सुव्रत दिवस के विजय मुहूर्त में, हस्तोत्तर (उत्तराफाल्गुनी) नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पूर्वगामिनी छाया होने पर, द्वितीय पौरुषी (प्रहर) के बीतने पर, निर्जल षष्ठभक्तप्रत्याख्यान (दो दिन के उपवासों) के साथ एकमात्र (देवदूष्य) वस्त्र को लेकर भगवान् महावीर चन्द्रप्रभा नाम की सहस्रवाहिनी शिविका में विराजमान हुए थे, जो देवों, मनुष्यों और असुरों की परिषद् द्वारा ले जाई जा रही थी। अतः उक्त परिषद् के साथ वे क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश के बीचोंबीच-मध्यभाग में से होते हुए जहाँ ज्ञातखण्ड नामक उद्यान था, उसके निकट पहुंचे। वहाँ पहंच कर देव छोटे से (मुड) हाथ-प्रमाण ऊँचे (अस्पृष्ट) भूभाग पर धीरे-धीरे उस 5. 'सहस्सवाहिणीयाए' के बदले पाठान्तर है-'सहस्सवाहिणीए / ' 2. 'सदेव मणुया' के बदले पाठान्तर है--'सचमणुया' सदेवमणुया वा। 3. 'सिबियातो के बदले पाठान्तर है-'सीयाओ' / 4. 'सम्वं मे अकरणिज्ज के पाठान्तर है 'सव्वंकरणिज्जं, सव्वंकरणिज्ज सव्वं अकरणिज्जं / 1. 'साहलोमलया' के बदले पाठान्तर है.-माहटलोमलया।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org