Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय शु तस्कन्ध 562. साधु या साध्वी यदि यह जाने कि नानाप्रकार के महामूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि लोहे के पात्र, रांगे के पात्र, तांबे के पात्र, सीमे के पात्र, चांदी के पात्र, सोने पात्र, पीतल के पात्र, हारपुट (त्रिलोहा) धातु के पात्र, मणि, काँच और कांसे के पात्र, शंख और सोंग के पात्र, दांत के पात्र, वस्त्र के पात्र, पत्थर के पात्र, या चमड़े के पात्र, दूसरे भी इसी तरह के नानाप्रकार के महा-मूल्यवान् पात्रों को अप्रासुक और अनेषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे / 563. साधु या साध्वी फिर उन पात्रों को जाने, जो नानाप्रकार के महामूल्यवान् बन्धन बाले हैं, जैसे कि वे लोह के बन्धन है, यावत् चर्म बन्धनवाले हैं, अथवा अन्य इसी प्रकार के महामूल्यवान् बन्धनवाले हैं, तो उन्हें अप्रासुक और अनषणीय जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। विवेचन-महामूल्यवान् एवं बहुमूल्य बन्धनवाले पात्रों का ग्रहण-निषेध-प्रस्तुत दो सूत्रों में उन पात्रों के ग्रहण करने का निषेध किया है, जो या तो धातु के हैं, या शंख, मणि, कांच, चर्म दांत और सींग आदि बहुमूल्य वस्तुओं से बने हुए हैं, या उनके बन्धन भी इन बहुमूल्य वस्तुओं के बने हुए हैं। इन बहुमूल्य पात्रों को ग्रहण करने के निषेध के पीछे निम्नोक्त कारण हो सकते हैं (1) चुराये जाने या छीने जाने का भय, (2) संग्रह करके रखने की संभावना, (3) क्रय-विक्रय या अदला-बदली करने की संभावना, (4) इन बहुमूल्य पात्रों के लिए धनिक की प्रशंसा, चाटुकारी आदि की संभावना (5) इन पर आसक्ति या ममता-मूर्छा और खराब पात्रों पर घृणा आने की संभावना (6) कीमती पात्र ही लेने की आदत, (7) इन पात्रों के बनाने तथा टूटने-फूटने पर जोड़ने में बहुत आरम्भ होता है (8) शंख दांत, चर्म, आदि के पात्रों के लिए उन-उन जीवों की हिंसा की संभावना; (8) सार्मिकों के साथ प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या एवं दूसरों को उपभोग के लिए न देने की भावना / ' इसीलिए निशीथ सूत्र में इस प्रकार के पात्र बनाने, बनवाने और बनाने का अनुमोदन करने वाले साधु-साध्वी के लिए प्रायश्चित्त का विधान है। चम्मपायाणि' का अर्थ है-चमड़े की कुप्पी आदि चेलपायाणि = कपड़े का खलीता, डब्बा या थैलीनुमा पात्र / / पात्रषणा को चार प्रतिमाएं 564. इच्चेताई आयतणाइउवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्जा चउहि पडिमाहिं पायं एसित्तए। 1. आचारांग मूल तथा वृत्ति पत्रांक 366 के आधार पर 2. निशीथ सूत्र 11/1 में देखिये वह पाठ-"जे भिक्खु अयपायाणि वा तउय-नंब-सौस-हिरण-सुवण्ण-रीरि. या-हारउड-मणि-काय कंस-अंक-संख-सिंग-दंत-सेलचेल-चम्मपायाणि वा अण्णतगणि वा तहप्पगाराड पाताई करेति............" 3. आचारांगचूणिचम्मपाद-चम्मकुतुओ, :" मू.प. टि. पृ. 214 4. निशीथचूणि 11/1 में 'चेलमयं पसेको खलियं वा पडियाकारं कज्जइ / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org