Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ निषोधिका : नवम अध्ययन प्राथमिक म आचारांग सूत्र (द्वि० श्र त०) के नौवें अध्ययन का नाम 'निषीधिका' है। र 'निषीधिका' शब्द भी जैन शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द है। यों तो निषीधिका का सामान्य रूप से अर्थ होता है-बैठने की जगह / - प्राकृत शब्द कोष में निषीधिका के निशीथिका, नषेधिकी आदि रूपान्तर तथा श्मशान भूमि, शवपरिष्ठापनभूमि, बैठने की जगह, पापक्रिया के त्याग की प्रवृत्ति, स्वाध्याय भूमि, अध्ययन स्थान आदि अर्थ मिलते हैं।' 5 प्रस्तुत प्रसंग में निषीधिका या निशीथिका दोनों का स्वाध्यायभूमि अर्थ ही अभीष्ट है। स्वाध्याय के लिए ऐसा ही स्थान अभीष्ट होता है, जहाँ अन्य सावध व्यापारों, जनता की भीड़, कलह, कोलाहल, कर्कशस्वर, रुदन आदि अशान्तिकारक बातों, गंदगी, मल-मूत्र, कड़ा डालने आदि निषिद्ध ब्यापारों का निषेध हो। जहाँ चिन्ता, शोक, आर्तध्यान रौद्रध्यान मोहोत्पादक रागरंग आदि कुविचारों का जाल न हो, जो सुविचारों की भूमि हो, स्वस्थ चिन्तनस्थली हो / दिगम्बर आम्नाय में प्रचलित 'नसीया' नाम इसी 'निसीहिया' का अपभ्रष्ट रूप है।' . - वह निषीधिका ('स्वाध्यायभूमि') कैसी हो? वहाँ स्वाध्याय करने हेतु कैसे बैठा जाए? कहाँ बैठा जाए? कौन-सी क्रियाएँ वहां न की जाएं ? कौन-सी की जाएं ? इत्यादि स्वाध्यायभूमि से सम्बन्धित क्रियाओं का निरूपण होने के कारण इस अध्ययन का नाम 'निषोधिका' या 'निशीथिका' रखा गया है। अथवा निशीथ एकान्त या प्रच्छन्न को भी कहते हैं / निशीथ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव चार प्रकार का है / द्रव्य-निशीथ यहाँ जनता के जमघट का अभाव है, क्षेत्र-निशोथ -एकान्त, शान्त, प्रच्छन्न एवं जनसमुदाय के आवागमन से रहित क्षेत्र है, काल-निशीथ --जिस काल में स्वाध्याय किया जा सके / और भाव-निशीथ-नो आगमतः, यह अध्ययन है। जिस अध्ययन में द्रव्य क्षेत्रादि चारों प्रकार से निषीथिका का प्रतिपादन हो, वह निशीथिका अध्ययन है। इसे निषीधिका-सप्तिका भी कहते हैं। यह दूसरी सप्तिका है। 1. 'पाइअ-सहमहयण बो' 10 414 2. आचारांग वृत्ति पत्रांक 408 के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org