Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ चउदसमं अज्झयणं 'अण्णमण्णकिरिया' सत्तिक्कओ अन्योन्यक्रिया सप्तक : चतुर्दश अध्ययन : सप्तम सप्तकिका अन्योन्यक्रिया-निषेध 730. से भिक्खू वा 2 अणमष्णकिरियं अज्झस्थिय संसेइयं णो तं सातिए णो तं नियम। 731. से अण्णमण्णे पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे, सेसं तं चेव। 732. एयं खलु सस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणोए वा सामग्गियं जं सव?हिं जावं जएज्जासि ति बेमि। 730. साधु या साध्वी की अन्योन्यक्रिया- परस्पर पाद-प्रमार्जनादि समस्त क्रिया, जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से भी न चाहे, और न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। 731. साधु या साध्वी (बिना कारण) परस्पर एक दूसरे के चरणों को पोंछ कर एक बार या बार-बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी इसे न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे। इस अध्ययन का शेष वर्णन तेरहवें अध्ययन में प्रतिपादित पाठों के समान जानना चाहिए। 732. यही (अन्योन्यक्रिया निषेध में स्थिरता ही) उस साधु या साध्वी का समग्न आचार है। जिसके लिए वह समस्त प्रयोजनों, ज्ञानादि एवं पंचसमितियों से युक्त होकर सदैव अहर्निश उसके पालन में प्रयत्नशील रहे। -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन–अन्योन्यक्रिया-निषेध-इन तीन सूत्रों में शास्त्रकार ने पिछले (तेरहवें) अध्ययन के समान ही समस्त वर्णन करके उन्हीं पाठों को यहाँ समझने का निर्देश किया है। विशेषता इतनी-सी है कि वहाँ 'परक्रिया' शब्द है जबकि इस अध्ययन में 'अन्योन्यक्रिया है। यह अन्योन्यक्रिया परस्पर दो साधुओं या दो साध्वियों को लेकर होती है। जहाँ दो साधु परस्पर एक दूसरे की परिचर्या करें, या दो साध्वियां परस्पर एक दूसरे की परिचर्या करें, 1. 'संसेइयं' के बदले पाठान्तर हैं-संसेतियं, संसतियं संसइयं / " 2. यहाँ 'जाव' शब्द से सव्वळेहिं से 'जएज्जासि' तक का पाठ सूत्र 334 के अनुसार समझें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org