Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ एकादश अध्ययन : सूत्र 680-86 335 681. साध या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि-वर-वधू युगल आदि के मिलने के स्थानों (विवाह-मण्डपों) में या जहां वरवधू-वर्णन किया जाता है, ऐसे स्थानों में, अश्वयुगल स्थानों में, हस्तियुगल स्थानों में तथा इसीप्रकार के अन्य कुतूहल एवं मनोरंजक स्थानों में, किन्तु ऐसे श्रव्य-गेयादि शब्द सुनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे। 682. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द-श्रवण करते हैं, जैसे कि कथा करने के स्थानों में, तोल-माप करने के स्थानों में या घुड़दौड़, कुश्ती प्रतियोगिता आदि के स्थानों में, महोत्सव स्थलों में, या जहाँ बड़े-बड़े नृत्य, नाट्य, गीत, वाद्य, तंत्री, तल (कांसी का वाद्य), ताल, टित वादित्र, ढोल बजाने आदि के आयोजन होते हैं, ऐसे स्थानों में तथा इसीप्रकार के अन्य मनोरंजन स्थलों में होने वाले शब्द, मगर ऐसे शब्दों को सुनने के लिए जाने का संकल्प न करे। 683. साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि जहाँ कलह होते हों, शत्रु सैन्य का भय हो, राष्ट्र का भीतरी या बाहरी विप्लव हो, दो राज्यों के परस्पर विरोधी स्थान हों, वैर के स्थान हों, विरोधी राजाओं के राज्य हों, तथा इसीप्रकार के अन्य विरोधी वातावरण के शब्द, किन्तु उन शब्दों को सुनने की दृष्टि में गमन करने का संकल्प न करे। 684. साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि वस्त्राभूषणों से मण्डित और अलंकृत तथा बहुत-से लोगों से घिरी हुई किसी छोटी बालिका को घोड़े आदि पर बिठाकर ले जाया जा रहा हो, अथवा किसी अपराधी व्यक्ति को वध के लिए बधस्थान में ले जाया जा रहा हो, तथा अन्य किसी ऐसे व्यक्ति की शोभायात्रा निकाली जा रही हो, उस समय होने वाले (जय, धिक्कार, तथा मानापमानसूचक नारों आदि) शब्दों को सुनने की उत्सुकता से वहां जाने का संकल्प न करे। 685. साधु या साध्वी अन्य नानाप्रकार के महास्रवस्थानों को इस प्रकार जाने, जैसे कि जहाँ बहुत से शकट, बहुत से रथ, बहुत से म्लेच्छ, बहुत से सीमाप्रान्तीय लोग एकत्रित हुए हों, अथवा उस प्रकार के नाना महासव के स्थान हों, वहाँ कानों से शब्द-श्रवण के उद्देश्य से जाने का मन में संकल्प न करे। 686. साधु या साध्वी किन्हीं नाना प्रकार के महोत्सवों को यों जाने कि जहाँ स्त्रियां, पुरुष, वृद्ध, बालक और युवक आभूषणों से विभूषित होकर गीत गाते हों, बाजे बजाते हों, नाचते हों, हंसते हो, आपस में खेलते हो, रतिक्रीड़ा करते हो, तथा विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों का उपभोग करते हों, परस्पर बांटते हों, या परोसते हों, त्याग करते हों, परस्पर तिरस्कार करते हों, उनके शब्दों को तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से महोत्सवों में होने वाले शब्दों की कान से सुनने की दृष्टि से जाने का मन में संकल्प न करे / विवेचन--मनोरंजन स्थलों में शब्दश्रवणोत्कण्ठा वर्जित--सूत्र 680 से 686 तक सप्तसूत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org