Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तेरहवां अध्ययन : सूत्र 711-24 716. यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को प्रासुक शीतल और उष्ण जल से थोड़ा या बहुत बार धोए तो साधु उने मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए। 720. यदि कोई गृहस्थ, मुनि के शरीर में हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को किसी विशेष शस्त्र से थोड़ा-सा छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे, अथवा किसी विशेष शस्त्र से थोड़ा-सा या विशेष रूप में छेदन करके मवाद या रक्त निकाले या उसे साफ करे तो साधु उसे मन मे भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए। विवेचन—सू० 715 से 720 तक 6 सूत्रों में गृहस्थ से गंडादि से सम्बन्धित परिकर्म रूप परक्रिया कराने का निषेध है / सभी विवेचन पूर्ववत् समझना चाहिए। इस परक्रिया से होने वाली हानियाँ भी पूर्ववत् हैं / निशीथ सूत्र में भी इससे मिलता-जुलता पाठ मिलता है।' गंडे' आदि शब्दों के अर्थ-प्राकृतकोश के अनुसार गंड शब्द के गालगंड-मालारोग, गांठ, ग्रन्थी, फोड़ा, स्फोटक आदि अर्थ होते हैं। यहाँ प्रसंगवश गंड शब्द के अर्थ गाँठ, ग्रन्थो, फोड़ा, या कंठमाला रोग है। 'अरइयं' (अरइ) के प्राकृतकोश में अर, अर्श, मस्सा, बबासीर आदि अर्थ मिलते हैं। 'पुलयं' (पुल) का अर्थ छोटा फोड़ा या फुसी होता है / भगदलं का अर्थ---- भगंदर है। अच्छिणं =एक बार या थोड़ा-सा छेदन, विच्छिदणं =बहुत बार या बार-बार अथवा अच्छी तरह छेदन करना / अंगपरिकर्म रूप परक्रिया निषेध 721. से से परो कायातो सेयं वा जल्लं वा णोहरेज्ज वा विसोहेज्ज बा, णो तं सातिए जो तं नियम। 722. से से परो अच्छिमलं वा कण्ण मलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णोहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे / 1. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 416 / (ख) निशीथ सूत्र उ. 3 चूणि 10 215-217 मे---''जे भिक्ख अपणो कार्यसि गड वा अरतिय वा असि वा पिलग वा भगंदलं वा अनतरेणं तिखेण सत्यजाएणं अच्छिदति वा विच्छिदति वा,.."पूयं वा सोणिय वा णीहरेति वा विमोहेति वा"..' सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेति वा पधोवेति वा...."आलेवणजाएणं आलिपइ वा विलिपद बा..... तेल्लेण वा घएण वा......"णवणीएण वा अभंगेति वा भक्खेति वा..... धूवणजाएणं धूवेति वा पधूवेति वा / " 2. क) पाइअ-मद्दमहण्णवो / (ख) निशोथ सूत्र उ० 3 चूणि पृ० २१५-२१७---गंड-गंडमाला, जं च अण्णं सुपायगं तं गंडं / अरतियं-अरतिओ ज ण पच्चति ।...."एक्कसि ईषद् वा अच्छिदणं, वहुवारं सुट्ठ वा छिदणं विच्छिदणं / " (ग) ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमच्छनि, ते पूला भिज्जति / -----स्थानांग० स्थान 10 3. 'कायातो' के बदले 'कायंसि' पाठान्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org