Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 352 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध 723. से से परो दोहाई वालाइ दोहाइं रोमाई दोहाई भमुहाई दोहाइकक्खरोमाई दोहाई वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा संठवेज्ज वा, णो तं सातिए णो तं नियमे / 724. से से परो सीसातो लिक्खं वा जूयं वा णीहरेज्ज' वा विसोहेज्ज वा, गो तं सातिए णो तं णियमे। 721, यदि कोई गृहस्थ, साधु के शरीर से पसीना, या मैल से युक्त पसीने को मिटाए (पोंछे) या साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे. और न ही वचन एवं काया से कराए। 722. यदि कोई गृहस्थ, साधु के आँख का मैल, कान का मैल. दाँत का मैल, या नख का मैल निकाले या उसे साफ करे, तो साध उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए। 723. यदि कोई गृहस्थ साध के सिर के लंबे केशों, लंबे रोमों, भौहों एवं कांख के लंबे रोमों, लंबे गुह्य रोमों को काटे, अथवा संवारे, तो साधु उसे मन से भी न चाहे, न ही वचन और काया से कराए। 724. यदि कोई गृहस्थ, साधु के सिर से जूं या लीख निकाले, या सिर साफ करे, तो साधु मन से भी न चाहे, और न ही वचन और काया से ऐसा कराए। विवेचन--सू० 721 से 724 तक चतु:सूत्री में उस परक्रिया का निषेध किया गया है, जो शरीर के विविध अंगों के परिकर्म से सम्बन्धित है। वस्तुतः इस प्रकार की शारीरिक परिचर्या गृहस्थ से लेने में पूर्वोक्त अनेक दोषों की सम्भावना है। इन सभी सूत्रों से मिलतेजुलते सूत्र निशीथ सूत्र में भी हैं। सेयं' आदि पदों के अर्थ-सेओ-स्वेद, पसीना। जल्लो=शरीर का मैल कप्पेज काटे / संठवेज्ज-संवारे / 1. निशीथचणि उ०-१३ में बताया गया है--"जे भिक्खू दीहाओ अप्पणो णहा इत्यादि जाव अप्पणो दीकेसे कप्पई, इत्यादि तेरस सुत्ता उच्चारेयव्वा।"-जे भिक्खू से लेकर अप्पणो दोहे केसे कप्पई 13 सूत्रों का उच्चारण करना चाहिए। जोहरति आदि का अर्थ निशीथचणि में है-“णीहरतिणाम णिग्गलेति। अवससेसावयफडण विसोहणं सभावन्थ सोणियं भण्णति / 3. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक 416 के आधार पर / निशीथ सूत्र उ० 3 चूणि 10 २१६-२२१--"जे भिक्खू अप्पणो दीहाओ णहसिहाओ कप्पेति संठवेति वा", दीहाई जंघरोमाई, दीहाई वत्थिरोमाई..."दीहाई कक्खाणरोमाई.. मंसूई कप्पेति वा संठवेति बादंते आमज्जति वा पमज्जति वा उत्तरोठरोमाई..."दीहरोमाई... भम्हारोमाई..."दीहे केसे कप्पेइ वा संठवेइ वा / जे भिक्खू अप्पणो कार्य सि सेयं वा, जल्लं वा पंकं वा मलं वा उव्वति वा पवति बा....."अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णखमलं वाणीहरति वा विसोधेति बा।" 4. आचारांग चूणि मू. पा० टि० पृष्ठ २२५--कप्पेति-छिदेति, संठवेति == समारेति, सेओ=प्रस्वेदो जल्लो= कमढो; मल थिग्गलं / तथा निशीथ भाष्य गा० 1521 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org