Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सप्तम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 626-32 289 626. से भिक्खू वा 2 अभिकखेज्जा अंबभित्तगं वा' अंबपेसियं वा अंबचोयगं वा अंबसालगं वा अंबदालगं वा भोत्तए वा पायए वा, से ज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबदालगं वा सअंडं जाव संताणगं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। 627. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा [जाव अंबदालगं वा] अप्पंडं जाव संताणगं अतिरिच्छच्छिण्णं [अव्वोच्छिण्णं | अफासुयं जाव नो पडिगाहेज्जा। 628. से ज्जं पुण जाणेज्जा अंबभित्तगं वा [जाव अंबदालगं वा अप्पडं जाव संताणगं तिरिच्छच्छिष्णं वोच्छिष्णं फासुयं जाव पडिगाहज्जा। 626. से भिक्खू वा 2 अभिकंखेज्जा उच्छवणं उवागच्छित्तए / जे तत्थ ईसरे जाव उग्गहियंसि [एवोग्गहियंसि ?] अह भिक्खू इच्छेज्जा उच्छं भोत्तए वा पायए वा. से ज्जं उच्छु जाणेज्जा सअंडं जाय णो पडिगाहज्जा अतिरिच्छच्छिण्णं तह व तिरिच्छच्छिाणे वि तहेव। 630. से भिक्खू वा 2 अभिकखेज्जा अंतरुच्छ्यं वा उच्छुगंडियं वा उच्छुचोयर्ग वा उच्छुसालगं वा भोत्तए वा पातए वा। से ज्जं पुण जाणेज्जा अंतरुच्छुयं वा जाव डालगं वा सअंडं जाव णो पडिगाहज्जा। 631. से भिक्खू वा 2 से ज्नं पुण जाणेज्जा अंतरुच्छुयं वा जाव डालगं वा अप्पंडं जाव नो पडिगाहेज्जा, अतिरिच्छच्छिणं तिरिच्छच्छिष्णं तहेव। 632. से भिक्खू वा 2 अभिकखेज्जा ल्हुसणवणं उवागच्छित्तए, तहेव तिणि वि आलावगा, नवरं ल्हसुणं। 1. निशीथचूणि में अन्य आचार्य के अभिप्राय की माथा इस प्रकार है ____ अंबं केणति ऊणं, डगल, भित्तगं बऊम्भागो। चोयं सयाओ भणिता साल पुण अक्खयं जाण / / 4700 / इसका भावार्थ विवेचन में दिया गया है। -निशीथ बूणि उ०१५ पृ० 481/482 2. अंबदालग के बदले पाठान्तर है-अंबडालगं, अंबडगलं 3. यहाँ जाव शब्द से ईसरे से उपाहियंसि तक का पाठ सूत्र 606 के अनुसार समझें / 4. जहाँ जहाँ तहेव पाठ है, वहाँ उसी सन्दर्भ में पूर्व बणित पाठ के अनुसार पाठ समझ लेना चाहिए / 5. निशीथ चणि उद्देशक 16 में इक्ष-अवयवसूत्रान्तर्गत शब्दों का अर्थ इस प्रकार दिया है पन्वसहितं तु खंडं, तद्वज्जियं अंतरच्छुयं होइ। डगलं चक्कलिछेदो. मोयं पुण 'ल्लिपरिहीणं // 4411 // चोयं तु होति होरो सगलं पुण तस्स वाहिरा छल्ली। डालं पुण मुक्कं (सुक्क) वा इतरजुतं तप्पइठं तु / / 4412 / / भावार्थ विवेचन में आ चुका है। देखें। -निशीथ चूणि उ० 16 पृ० 66 6. किसी प्रति में 'उच्छुचोयगं' पाठ नहीं है, तो किसी में 'उच्छुडालगं' पाठ नहीं है, कहीं 'अंतरुच्छुयं' पाठ नहीं है, कहीं 'तिरिच्छच्छिण्णं' पाठ नहीं है। 1. 'तहेब' शब्द से यहाँ अंबवणं सूत्र 623, 24, 25 के अनुसार सारा पाठ समझें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org