Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पंचम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र 583 257 हवा चल रही हो, तिरछे उड़नेवाले अस प्राणी गिर रहे हों तो उस समय वस्त्र साथ में लेकर जाने का ही नहीं, उपाश्रय से बाहर निकलने या भिक्षा आदि स्थलों में प्रवेश करने का भी निषेध है / यह विधान और निषेध परस्पर विरुद्ध नही, अपितु प्राणि-विराधना एवं आत्म-विराधना होने की सम्भावना से निषेध है और अपहरण किये जाने, द्वेषवश फेंक दिये जाने या शस्त्रादि रखकर दोषारोप लगाने या भक्तिवश गृहस्थ द्वारा धोकर, रंगकर या सुवासित करके देने की आशंका से विधान है। अधिक उपधि का निषेध करना भी इस विधान का आशय हो सकता है। प्रातिहारिक वस्त्र ग्रहण-प्रत्यर्पण-विधि 583. से एगतिओ मुहत्तगं 2 पाडिहारियं' वत्थं जाएज्जा जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय 2 उवागच्छेज्जा, तहपगारं वत्थं णो अप्पणा गेण्हेज्जा, नो अन्नमन्नस्स देज्जा, नो पामिच्चं कुज्जा, णो वत्थेण वत्थं परिणामं करेज्जा, णो परं उवसंकमित्ता एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! अभिकखसि वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ? थिरं वा णं संतं णो पलिछिदिय 2 परिद्ववेज्जा, तहप्पगारं वत्थं ससंधियं तस्स चेव निसिरेज्जा, नो णं सातिज्जेज्जा / से एगतिओ एयप्पगारं निग्धोसं सोच्चा निसम्म 'जे भयंतारो तहप्पगाराणि वत्थाणि ससंधियाणि मुहुत्तगं 2 जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा लियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विप्पवसिय 2 उवागच्छंति, तहप्पगाराणि वत्थाणि नो अप्पणा गिव्हंति, नो अन्नमन्नस्स दलयंति, तं चेव जाव नो साइज्जंति, बहुवयण भाणियव्वं / से हंता अहमवि मुहत्तं पाडिहारियं वत्थं जाइत्ता जाव एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा विष्पवसिय 2 उवागच्छिस्सानि, अवियाई एतं ममेव सिया, माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा। 583. कोई साधु मुहूर्त आदि नियतकाल के लिए किसी दूसरे साधु से प्रातिहारिक 1. 'पाडिहारिय वत्यं' के बदले कहीं-कहीं पाठान्तर हैं- 'पाडिहारियं बीयं वत्थं .....अर्थात्-प्राति हारिक दूसरा वस्त्र माँगे / 2. 'दुयाहेण' के बदले पाठान्तर है-वाहेन / अर्थ समान है। 3. पणो अपणा गेण्हेज्जा' के बाद अतिरिक्त पाठ है-'नो पर गिण्हाविज्जा / ' अर्थात दुसरे को लेने 4. 'से एगतिओ' पाठ किसी-किसी प्रति में नही है। 5. 'ससंधियाणि' पाठ किसी-किसी प्रति में नहीं है। 6. 'बहुबयणेण भाणियन्वं' के बदले पाठान्तर हैं:-'बहुवयणेण भासियवं', 'बहुमाणेण भासियध्वं' इनका क्रमश: अर्थ है---बहवचन से आलापक कहना चाहिए / / बहुमानपूर्वक बोलना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org