Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पंचम अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 557-558 241 कायक----इन्द्रनीलवर्ण कपास से निर्मित, क्षौमिक दुकूल-गौड़देश में उत्पन्न विशिष्ट कपास से बने हुए वस्त्र, परेशम के वस्त्र, मलयज (चन्दन) के सूते से बने या मलयदेश में बने वस्त्र, वल्कलतन्तुओं से निर्मित वस्त्र अंशक-बारीक वस्त्र, चीनांशुक-चीन देश के बने अत्यन्त सूक्ष्म एवं कोमल वस्त्र, देशराग-एक प्रदेश से रंगे हुए, अमिल-रोमदेश में निर्मित, गर्जल-पहनते समय बिजली के समान कड़कड़ शब्द करने वाले वस्त्र, स्फटिक- स्फटिक के समान स्वच्छ पारसी कंबल, या मोटा कंबल तथा अन्य इसीप्रकार के बहुमूल्य वस्त्र प्राप्त होने पर भी विचारशील साधु उन्हें ग्रहण न करे। 558. साधु या साध्वी यदि चर्म से निष्पन्न ओढने के वस्त्र जाने जैसे कि औद्र–सिन्धु देश के मत्स्य के चर्म और सूक्ष्म रोम से निष्पन्न, वस्त्र पेष-सिन्धुदेश के सूक्ष्म चर्मवाले जानवरों से निष्पन्न, पेयलेश-उसी के चर्म पर स्थित सूक्ष्म रोमों से बने हुए, कृष्ण, नील और गौरवर्ण के मृगों के चमडों से निर्मित वस्त्र, स्वर्णरस में लिपटे वस्त्र, सोने की कान्ति वाले वस्त्र, सोने के रस पट्टियाँ दिये हुए वस्त्र, सोने के पुष्प गुच्छों से अंकित सोने के तारों से जटित, और स्वर्ण चन्द्रिकाओं से स्पर्शित, व्याघ्रचर्म, चीते का चर्म, आभरणों से मण्डित, आभरणों से चित्रित ये तथा अन्य इसीप्रकार के चर्म-निष्पन्न प्रावरण = वस्त्र प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे / विवेचन-बहुमूल्य एवं चर्म-निष्पन्न वस्त्र ग्रहण-निषेध-प्रस्तुत सूत्रद्वय में उस युग में प्रचलित कतिपय बहुमूल्य एवं चर्मनिर्मित वस्त्रों के ग्रहण का निषेध किया गया है। इस निषेध के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं (1) ये अनेक प्रकार के आरम्भ-समारम्भ (प्राणि-हिंसा) से तैयार होते हैं / (2) इनके चुराये जाने या लूटे-छीने जाने का डर रहता है / (3) साधुओं के द्वारा ऐसे वस्त्रों की अधिक मांग होने पर ऐसे वस्त्रों के लिए उन-उन पशुओं को मारा जाएगा, भयंकर पंचेन्द्रियवध होगा। (4) साधुओं को इन बहुमूल्य वस्त्रों पर मोह, मूर्छा पैदा होगी, संचित करके रखने की वृत्ति पैदा होगी। (5) साधुओं का जीवन सुकुमार बन जाएगा। (6) इतने बहुमूल्य वस्त्र साधारण गृहस्थ के यहाँ मिल नहीं सकेंगे। (7) विशिष्ट धनाढ्य गृहस्थ भक्तिभाववाला नहीं होगा, तो वह साधुओं को ऐसे कीमती वस्त्र नहीं देगा, साधु उन्हें परेशान भी करेंगे। (8) भक्तिमान धनाढ्य गृहस्थ मोल लाकर या विशेष रूप से बुनकरों से बनवाकर देगा। (E) एषणादोष लगने की संभावना अधिक है।' 1. आचारांग मूल तथा वृत्ति पत्रांक 364 के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org