Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आचारांग सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध मुनि (प्रत्येक चर्या में) यतनापूर्वक विहार करे, चित्त को गति में एकाग्र कर, मार्ग का सतत अवलोकन करते हुए (दृष्टि टिका कर) चले / जीव-जन्तु को देखकर पैरों को आगे बढ़ने से रोक ले और मार्ग में आने वाले प्राणियों को देखकर गमन . करे। वह भिक्षु (किसी कार्यवश कहीं) जाता हुअा, (कहीं से) वापस लौटता हुमा, (हाथ, पैर आदि) अंगों को सिकोड़ता हुआ, फैलाता (पसारता हुआ) समस्त अशुभप्रवृत्तियों से निवृत्त होकर, सम्यक् प्रकार से (हाथ-पैर आदि अवयवों तथा उनके रखने के स्थानों को) परिमार्जन (रजोहरणादि से) करता हुआ समस्त क्रियाएँ करे। - विवेचन-इस सूत्र में अव्यक्त साधु के लिए एकाकी विचरण का निषेध किया गया है। वृत्तिकार ने अव्यक्त का लक्षण देकर उसकी चतुर्भगी (चार विकल्प) बताई है / अव्यक्त साधु के दो प्रकार हैं-(१) श्रुत (ज्ञान) से अव्यक्त और (2) वय (अवस्था) से अव्यक्त / जिस साधु ने 'प्राचार प्रकल्प' का (अर्थ सहित) अध्ययन नहीं किया है, वह गच्छ में रहा हया श्रुत से अव्यक्त है और गच्छ से निर्गत की दृष्टि से अव्यक्त वह है, जिसने नौवें पूर्व की तृतीय प्राचारवस्तु तक का अध्ययन न किया हो। वय से गच्छगत अव्यक्त वह है, जो सोलह वर्ष की उम्र से नीचे का हो, परन्तु गच्छनिर्गत अव्यक्त वह कहलाता है, जो 30 वर्ष की उम्र से नीचे का हो। ... चतुर्भगी इस प्रकार है-(१) कुछ साधक श्रुत और वय दोनों से अव्यक्त होते हैं, उनकी एकचर्या संयम और आत्मा की विघातक होती है। (2) कुछ साधक श्रुत से अव्यक्त, किन्तु वय से व्यक्त होते हैं, अगीतार्थ होने से उनकी एकचर्या में भी दोनों खतरे हैं। (3) कुछ साधक श्रुत से व्यक्त किन्तु वय से अव्यक्त होते हैं, वे बालक होने के कारण सबसे पराभूत हो सकते हैं। (4) कुछ साधक श्रुत और वय दोनों से व्यक्त होते हैं / वे भी प्रयोजनवश या प्रतिमा स्वीकार करके एकाकी विहार या अभ्युद्यत विहार अंगीकार कर सकते हैं, किन्तु कारण विशेष के अभाव में उनके लिए भी एकचर्या की अनुमति नहीं है / प्रयोजन के अभाव में व्यक्त के एकाकी विचरण में कई दोषों की सम्भावनाएँ हैं। अकस्मात् अतिसार या वातादि क्षोभ से कोई ब्याधि हो जाय तो संयम और प्रात्मा की विराधना होने की सम्भावना है, प्रवचन हीलना (संघ की बदनामी) भी हो सकती है। वय व श्रुत से अव्यक्त साधक के एकाकी विचरण में दोष ये हैं--किसी गांव में किसी व्यक्ति ने जरा-सा भी उसे छेड़ दिया या अपशब्द कह दिया तो उसके भी गाली-गलौज या मारामारी करने को उद्यत हो जाने की सम्भावना है। गांव में कुलटा स्त्रियों के फंस जाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org