Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 506-14 203 कंदाणि वा मूलाणि वा तयाणि' वा पत्ताणि वा पुप्फाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरिताणि वा उदयं वा संणिहियं अगणि वा संणिक्खितं, से आइक्खहरे जाव दूइज्जेज्जा। 512. से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा--आउसंतो समणा ! अबियाई एत्तो पडिपहे पासह जवसाणि वा' जाव सेणं वा विरूवरूवं संणिविट्ठ, से आइक्खह जाव दूइज्जेज्जा। 513. से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवतिए एत्तो गामे वा जाव रायहाणि (णी) वा ?—से आइक्खह जाब दूइज्जेज्जा। 514. से भिक्खू वा 2 गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से पाडिपहिया जाव आउसंतो समणा ! केवइए एत्तो गामस्स वा नगरस्स वा जाव रायहाणीए वा मग्गे ? से आइक्खह तहेव जाव दूइज्जेज्जा। 510. संयमशील साधु या साध्वी को ग्रामानुग्राम विहार करते हुए रास्ते में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएं और वे यों पूछे-आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में किसी मनुष्य को, मृग को, भैंसे को, पशु या पक्षी को, सर्प को या किसी जलचर जन्तु को जाते हुए देखा है ? यदि देखा हो तो हमें बतलाओ कि वे किस ओर गए हैं, हमें दिखाओ।" ऐसा कहने पर साधु न तो उन्हें कुछ बतलाए, न मार्गदर्शन करे, न ही उनकी बात को स्वीकार करे, बल्कि कोई उत्तर न देकर उदासीनतापूर्वक मौन रहे। अथवा जानता हुआ भी (उपेक्षा भाव से) मैं नहीं जानता. ऐसा कहे। फिर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। 511. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु को मार्ग में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएं और वे साधु से यों पूछे-आयुष्मन् श्रमण ! क्या आपने इस मार्ग में जल में पैदा होने वाले कन्द, या मूल, अथवा छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज, हरित अथवा संग्रह किया हुआ पेय जल या निकटवर्ती जल का स्थान, अथवा एक जगह रखी हुई अग्नि देखी है ? अगर देखी हो तो हमें बताओ, दिखाओ, कहाँ है ?" ऐसा कहने पर साधु न तो उन्हें कुछ बताए, (न दिखाए, और न ही वह उनकी बात स्वीकार करे, अपितु मौन रहे। अथवा जानता हुआ भी (उपेक्षा भाव से) नहीं जानता, ऐसा कहे / ) तत्पश्चात् यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। 512. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए 1. तया, पत्ता, पुप्फा, फला, बीया, हरिया-ये पाठान्तर भी है। 2. 'जाव' शब्द से यहाँ 'आइक्लह' से लेकर 'वूइज्जेज्जा' तक का सारा पाठ। सूत्र 510 के अनुसार समझें। 3. जाव शब्द से यहाँ जबसाणिवा से लेकर सेणं वा तक का सारा पाठ सूत्र 500 के अनुसार समझे। 4. वैकल्पिक अर्थ---जानता हुआ भी 'जानता हूं' ऐसा न कहे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org