Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 506.6 201 रिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्य' जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहि सद्धि जाव दूइज्जेज्जा। 507. से भिक्खू वा 2 आयरिय-उवज्झाएहि सद्धि दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! के तुब्भे, कओ वा एह, कहि वा गच्छिहिह ? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा वियागरेज्ज वा आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा णो अंतरा भासं करेज्जा, ततो संजयामेव आहारातिणियाए दूइज्जेज्जा। 508. से भिक्खू बा 2 आहारातिणियं गामाणुगाम दूइज्जमाणे णो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाव अणासायमाणे ततो संजयामेव आहाराइणियं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। 506. से भिक्खू वा 2 आहाराइणियं [गामाणुगाम] दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा-आउसंतो समणा ! के तुबभे? जे तत्थ सवरातिणिए से भासेज्ज वा वियागरेज्ज वा, रातिणियस्स भासमाणस्स वा वियागरेमाणस्स वा गो अंतरा भासं भासेज्जा / ततो संजयामेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। 506. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु अपने हाथ से उनके हाथ का, पैर से उनके पैर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का (अविनय अविवेकपूर्ण रीति से) स्पर्श न करे / उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईर्यासमिति पूर्वक उनके साथ ग्रामानुग्राम विहार करे। 507. आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करनेवाले साधु को मार्ग में यदि सामने से आते हुए कुछ यात्री मिलें, और वे पूछे कि-"आयुष्मन् श्रमण ! आप कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ? कहाँ जाएंगे?" (इस प्रश्न पर) जो आचार्य या उपाध्याय साथ में हैं, वे उन्हें सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंगे। आचार्य या उपाध्याय सामान्य या विशेष रूप से उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे हों, तब वह साधु बीच में न बोले। किन्तु मौन रह कर ईर्यासमिति का ध्यान रखता हुआ रत्नाधिक क्रम से उनके साथ ग्रामान्ग्राम विचरण करे। 508. रत्नाधिक (अपने से दीक्षा में बड़े) साधु के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ मुनि अपने हाथ से रत्नाधिक साधु के हाथ को, अपने पैर से उनके पैर को तथा अपने 1. यहां जाव शब्द 'हत्थं' से लेकर 'अणासायमाणे तक के पाठ का सूचक है सूत्र 487 के अनुसार। 2. यहाँ जाव शब्द से 'साँद' से लेकर दूइज्जेज्जा तक का पाठ सू० 505 के अनुसार समझें / 3. आहारातिणियाए के स्थान पर पाठान्तर है--आहाराइणिए, अहारायणिए; अहारायइणियाए, आधा राईणियाए आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org