Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 342 आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध (ख) सूत्र १९९-असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा साइमं वा आदि / 'से भिक्खू वा 2' संक्षिप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार 'असणं वा 4, जाव' या 'असणेण वा 4' संक्षिप्त करके प्रागे के सूत्रों में संकेत मात्र किये गये हैं। (ख) पुनरावृत्ति-कहीं-कहीं '2' का चिह्न द्विरुक्ति का सूचक भी हुआ है-जैसे सूत्र 360 में पगिज्झिय 2 'उद्दिसिय 2 / इसका संकेत है-पगिझिय पगिजिमय, उद्दिसिय उद्दिसिय / अन्यत्र भी यथोचित समझे। क्रिया पद से आगे '2' का चिह्न कहीं क्रिया काल के परिवर्तन का भी सूचन करता है, जैसे सूत्र 357 में-- 'एगंतमवक्कमेज्जा 2' यहाँ 'एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता' पूर्व क्रिया का सूचक है। इसी प्रकार अन्यत्र भी। क्रिया पद के आगे '3' का चिह्न तीनों काल के क्रियापद के पाठ का सूचन करता है, जैसे सूत्र 362 में 'हचिसु वा' 3 यह संकेत-'हचिसु वा रुचंति वा रुचिस्तंति वा' इस-कालिक क्रियापद का सूचक है, ऐसा अन्यत्र भी है / मूल पाठ में ध्यान पूर्वक ये संकेत रखे गए हैं, फिर भी विज्ञ पाठक स्व-विवेकबुद्धि से तथा योग्य शुद्ध अन्वेषण करके पढ़ेंगे-विनम्र निवेदन है। --सम्पादक संक्षिप्त संकेतित सूत्र 228 समग्र पाठ युक्त मूल सूत्र-संख्या 224 227 187 224 207, 208, 218, 223, 227 221, 227 228 221 205 205 जाव-पद माह्य पाठ अपंडे जाव असणेण वा 4 असणं वा 4 प्रागममाणे जाव गाम वा जाव धारेज्जा जाव परक्कमेज्ज वा जाव पाणाई 4 वत्थाई जाएज्जा जाव वत्थं वा 4 समारंभ जाव 214 204 204 217 214 205, 207, 208 205 204 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org