Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध अह पुणेवं जाणेज्जा-विगतोदए मे काए छिण्णसिणेहे / तहप्पगारं कायं आमज्जज्ज वा' जाव पयावेज्ज वा। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। 463. ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में जंघा-प्रमाण (जंघा से पार करने योग्य) जल (जलाशय या नदी) पड़ता हो तो उसे पार करने के लिए वह पहले सिर-सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैर तक प्रमार्जन करे / इस प्रकार सिर से पैर तक का प्रमार्जन करके वह एक पैर को जल में और एक पैर को स्थल में रखकर यतनापूर्वक जंघा से तरणीय जल को, भगवान् के द्वारा कथित ईर्या समिति की विधि के अनुसार पार करे / 464. साधु या साध्वी जंघा से तरणीय जल को शास्त्रोक्तविधि के अनुसार पार करते हुए हाथ से हाथ का, पैर से पैर का तथा शरीर के विविध अवयवों का परस्पर स्पर्श न करे / इस प्रकार वह शरीर के विविध अंगों का परस्पर स्पर्श न करते हुए भगवान् द्वारा प्रतिपादित ईर्यासमिति की विधि के अनुसार यतनापूर्वक उस जंघातरणीय जल को पार करे। 465. साधु या साध्वी जंघा-प्रमाण जल में शास्त्रोक्तविधि के अनुसार चलते हुए शारीरिक सुख-शान्ति की अपेक्षा से या दाह उपशान्त करने के लिए गहरे और विस्तृत जल में प्रवेश न करे और जब उसे यह अनुभव होने लगे कि मैं उपकरणादि-सहित जल से पार नहीं हो सकता, तो वह उनका त्याग कर दे, शरीर-उपकरण आदि के ऊपर से ममता का विसर्जन कर दे। उसके पश्चात् वह यतनापूर्वक शास्त्रोक्तविधि से उस जंधा-प्रमाण जल को पार करे। 466. यदि वह यह जाने कि मैं उपधि-सहित ही जल से पार हो सकता हूँ तो वह उपकरण सहित पार हो जाए। परन्तु किनारे पर आने के बाद जब तक उसके शरीर से पानी की बूंद टपकती हो, जब तक उसका शरीर जरा-सा भी भीगा है, तब तक वह जल (नदी) के किनारे ही खड़ा रहे। 467. वह साधु या साध्वी जल टपकते हुए या जल से भीगे हुए शरीर को एक बार या बार-बार हाथ से स्पर्श न करे, न उसे एक या अधिक बार घिसे, न उस पर मालिश करे, और न ही उबटन की तरह उस शरीर से मैल उतारे। वह भीगे हुए शरीर और उपधि को सुखाने के लिए धूप से थोड़ा या अधिक गर्म भी न करे। जब वह यह जान ले कि अब मेरा शरीर पूरी तरह सूख गया है, उस पर जल की बूंद या जल का लेप भी नहीं रहा है, तभी अपने हाथ से उस शरीर का स्पर्श करे, उसे सहलाए, रगड़े, मर्दन करे यावत् धूप में खड़ा रह कर उसे थोड़ा या अधिक गर्म करे। तत्पश्चात् वह संयमी साधु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करे / 1. जाव शब्द यहाँ आमज्जेज्ज वा से लेकर 'पयावेज्जा तक का पाठ ग्रहण सूचित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org