Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आचारांग सूत्र--द्वितीय श्रु तस्कन्ध में लेने का आग्रह करता है, लेन पर मुनि को शय्यातरपिण्ड-ग्रहण नामक दोष लगता है, न लेने पर मुनि के प्रति उसके मन में रोष, द्वष, अवज्ञा आदि होना संभव है। वियागरमाणे समिया विधागरेइ ?' इस पंक्ति का आशय चूर्णिकार यों बताते है-उयाश्रय के गुण-दोष बताने वाला निष्कट भद्र साधु सम्यक् कथन करता है ? अर्थात् कर्म बन्धन से लिप्त तो नहीं होता ? इसके उत्तर में कहते हैं, हां वह ठीक ही कहता है," अर्थात् कर्मबन्ध से लिप्त नहीं होता।' निष्कर्ष यह है कि भावुक गृहस्थ साधु के कथन पर से उपाश्रय निर्माण के लिए जो भी आरम्भ-समारम्भ करता है, उस पापकर्म का भागी उपाश्रय के दोष बताने वाला साधु नहीं होता। उपाश्रय में यतना के लिए प्रेरणा - 444. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा-खुड्डियाओ खुड्डदुवारियाओ णितियाओ संणिरुद्धाओ भवंति, तहप्पगारे उवस्सए राओ वा वियाले वा णिक्खममाणे वा पविसमाणे वा पुराहत्थेण पच्छापाएण ततो संजयामेव णिक्खमेज्ज वा पक्सेिज्ज वा। केवलो बूया आयाणमेतं / जे तत्थ समणाण वा माहणाण वा छत्तए वा मत्तए वा डंडए 1. आचारांग चूणि में देखिये- म एवं साहू अक्वायमाणो सम्यक् अक्वाति. ण लिपति कम्मबंधेण ? अस्स गाहा (1) वागरण-हता ! सम्यक भणति, ण लिप्पति कम्मबंधेण इत्यर्थः / 2. खुड्डियाओ आदि पदों की व्याख्या चूणि में इस प्रकार है-खुड़ि खुड्डि एव दुवार संनिरुद्ध खुङलग वा / णिच्चिताओ, ग उच्चाओ। संनिरुद्धा साधुहिं अग्नेहि वा भरितिया, अहवा खुड्डलिया चैव भण्णं ति संणिरुद्धया। एतास दिवा विण कम्पति. कारणठियाणं, जयणा। राति--विगाला भणिता। पुराहत्थेण रयहरणेण, हत्योपचारं कृत्वा / पच्छा पादं करेज्जा।" अर्थात्-खुड्डि:छोटा दुबारं:-द्वार है. संनिरुद्ध-बंद है, अथवा क्षुद्रक है। णिच्चिताओ==ॐ'चा नहीं है। संनिरुद्धा--दूसरे साधुओं से भरा पड़ा है. अथवा छोटे-से मकान को ही संनिरुद्यक-चारों ओर से बंद कहते हैं। ऐसे मकानों में दिन में भी रहना नहीं कल्पता। कारणवश रहने वाले साधुओं के लिए यह यतना रात्रि और विकाला (सन्ध्या) के लिए बताई है। पुराहत्येण रजोहरण से हाथ का उपचार करके पहले टटोले, पच्छापाएण-फिर पैर उठाए। 3. "जे तत्थ समणाण वा-, आदि पदों की व्याख्या चणि में इस प्रकार की है-के च दोसा? समणा पंच, माहणा धीयारा अहवा सावगा, छत छत्तमेव, मत्तए उच्चारादि, भण्डए वा पादणिज्जोगो सम्वं वा उवगरणं, लट्ठी आयप्पमाणा, भिसित्ता कट्ठमयी, मिसिगाभिसिगा चेव, चेलग्गहणा वत्थं, च (छि) लिमणी दोरो. चम्मए मिगचम्म उवाहणाओवा, चम्मकोसओ खल्लओ अंगुटठकोसए वर, चम्मच्छेदणयं-- बम्भो।"-- ---- अर्थात्-वे दोप कौन-से ? समणा-५ प्रकार के श्रमण , माहणा- ब्राह्मण या श्रावक, छत्त= छत्रक (छाता), मत्तए= उच्चारादि के लिए तीन भाजन, भंडए - पात्र-निर्योग (पात्र व इससे सम्बन्धित सामान) या समस्त उपकरण, लट्ठी-अपनी ऊंचाई के बराबर, भिसिता-काष्ठमय आसन अथवा ऋमि-आमन (वृषिका), चेल =वस्त्र, निलमिरी--रस्सा या मछरदानी, यवनिका / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org