Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम अध्ययन : अष्टम उद्देशक : सूत्र 375.88 इक्षुखण्ड --गंडेरी है, अंककरेलु, निक्खारक, कसेरू, सिंघाड़ा एवं पुतिआलुक नामक वनस्पति है, अथवा अन्य इसीप्रकार की वनस्पति विशेष है, जो अपक्व (कच्ची) तथा अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। 383. गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ नीलकमल आदि या कमल की नाल है, पदम कन्दमुल है, या पदमकन्द के ऊपर की लता है, पद्मकेसर है, या पद्मकन्द है, तथा इसीप्रकार का अन्य कन्द है, जो कच्चा (अपक्व) है, शस्त्र-परिणत नहीं है तो उसे अप्रासुक व अनेषणीय जानकर मिलने पर भी ग्रहण न करे। 384. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साध या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ अग्रवीज वाली, मूल बीज वाली; स्कन्धबीज वाली तथा पर्वबीज वाली वनस्पति है, एवं अग्रजात मूलजात, स्कन्धजात तथा पर्वजात वनस्पति है, (इनकी यह विशेषता है कि ये अग्रमूल आदि पूर्वोक्त भागों के सिवाय अन्य भाग में उत्पन्न नहीं होती) तथा कन्दली का गूदा (गर्भ), कन्दली का स्तबक, नारियल का गूदा खजूर का गूदा, ताड़ का गूदा तथा अन्य इसी प्रकार की कच्ची और अशस्त्र-परिणत वनस्पति है, उसे अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी ग्रहण न करे / 385. गृहस्थ के यहाँ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ ईख है, छेद वाला काना ईख है, तथा जिसका रंग बदल गया है, जिसकी छाल फट गई है, सियारों ने थोड़ा-सा खा भी लिया है, ऐसा फल है, तथा बेत का अग्रभाग है, कदली का मध्य भाग है एवं इसी प्रकार की अन्य कोई वनस्पति है, जो कच्ची और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे साधु अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी न ले। 386. गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि जाने कि वहाँ लहसुन है, लहसुन का पत्ता, उसकी नाल (डंडी), लहसुन का कंद या लहसुन की बाहर की (गीली) छाल, या अन्य उस प्रकार की वनस्पति है, जो कि कच्ची (अपक्व) और अशस्त्र-परिणत है, तो उसे अप्रासुक और अनेषणीय मानकर मिलने पर ग्रहण न करे। 387. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ आस्थिक वृक्ष के फल, टैम्बरु के फल, टिम्ब (बेल) का फल, काश्यपालिका (श्रीपर्णी) का फल, अथवा अन्य इसीप्रकार के फल. जो कि गड्ढे में दबा कर धुंए आदि से पकाये गए हों, कच्चे (बिना पके) हैं तथा शस्त्र-परिणत नहीं हैं ऐसे फल को अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी नहीं लेना चाहिए। __ 388. गृहस्थ के घर में आहार के निमित्त प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जाने कि वहाँ शाली धान आदि अन्न के कण है, कणों से मिश्रित छाणक (चोकर) है, कणों से मिश्रित कच्ची रोटी चावल, चावलों का आटा, तिल, तिलकूट, तिलपपड़ी (तिलपट्टी) है, अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org