Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ आचारांग सूत्र-द्वितीय भू तस्कन्ध दो तरह से आहार लिया जा सकता है (1) जो देने को उद्यत है, उसके हाथ आदि सचित्त पानी आदि से सने हैं, परन्तु देय वस्तु सचित्त से लिप्त नहीं है, ऐसी स्थिति में सचित्त से सने हुए हाथ आदि जिसके न हों, वह अन्य व्यक्ति देना चाहे तो साधु उस आहार को ले सकता है। (2) दाता के हाथ आदि सचित्त जल आदि से संसृष्ट नहीं हैं, किन्तु देय वस्तु से संसृष्ट हैं तो ले-ले।' सचिन-मिश्रित आहार-ग्रहण निवेध 361. से भिक्खू वा 2 [जाव समाणे] से ज्ज पुण जाणेज्जा-पिहयं वा बहुरयं वा जाव चाउलपलंब वा अस्संजए भिक्षुपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव मक्कडासंताणाए कोट्टिसु वा कोट्टेति वा कोट्टिस्संति वा उप्फणिसु वा 3 / तहप्पगारं पिहुयं वा जाव चाउलपलं वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। 362. से भिक्खू वा 2 जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा-बिलं वा लोणं उभियं वा लोणं अस्संजए भिक्षुपडियाए चित्तमंताए सिलाए जाव संताणाए भिदिसु वा भिदंत वा भिदिस्संति वा चिसु वा 3, बिलं वा लोणं उम्भियं वा लोणं अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। 363. से भिक्खू वा 2 जाव समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा-असणं वा 4 अगणिणिक्खितं, तहप्पगारं असणं वा 4 अफासुर्य लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। गेल्य वणिय सेडिय, सोरठिय पिट्ठ कुक्कुसकए य / उक्कट्ठमसंसठे, संसटठे चेव बोधब्वे // 34 // असंसद्रुण हत्थेण, वन्वीए भायणेण वा। दिज्जमाणं न इच्छेज्जा, पच्छाकम्म जहिं भवे // 35 // -~दशव० 5/1 (ख) दशवै० चूणि पृ० 178 में देखिए 17 गाथाएं / , 1. टीका पत्र 341 से। 2. अन्य प्रतियों में, वृत्ति में भी 'जाव समाणे' पद है, ऐसा प्रतीत होता है। 3. बहरयं वा' के बाद पठित 'जाव' शब्द 'भज्जियं वा मंचं या चाउल वा' सूत्र 326 के पाठ का सूचक है। 4. 'उफणिसु वा के बाद '3' का अंक "उफणंति वा उफणिस्तंति वा' का सूचक है। 5. यहाँ 'अफासुयं' के बाद 'जाव' शन्द अणेसणिज्ज मण्णमाणे लाभे संते' इतने पाठ का सूचक है। 6. 'रुचिसु वा 3' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है--रुचिसु वा रुचंति वा, रुचिरसंति वा इत्यों शयः। पीसा था, पीसती है, या पीसेगी--यह अर्थ समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org