Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय अध्ययन : तृतीय उद्देशक : सूत्र 122-123 105 'लहुभूयगामी' के दो रूप होते हैं-(१) लघुभूतगामी और (2) लघुभूतकामी / लघुभूतजो कर्मभार से सर्वथा रहित है-मोक्ष या संयम को प्राप्त करने के लिए जो गतिशील है, वह लघुभूतगामी है और जो लघुभूत (अपरिग्रही या निष्पाप होकर बिलकुल हलका) बनने की कामना (मनोरथ) करता है, वह लघुभूतकामी है।' ज्ञातासूत्र में लघुभूत तुम्बी का उदाहरण देकर बताया है कि जैसे-सर्वथा लेपरहित होने पर तुम्बी जल के ऊपर आ जाती है, वैसे ही लघुभूत आत्मा संसार से ऊपर मोक्ष में पहुँच जाता है / // द्वितीय उद्देशक समाप्त // तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक समता-दर्शन 122. संधि लोगस्स जाणित्ता आयओ बहिया पास / तम्हा ण हंता ण विघातए। जमिणं अण्णमण्णवितिगिछाए पडिलेहाए ण करेति पावं कम्मं किं तत्थ मुणी कारणं सिया?। 123. समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विप्पसादए / अणण्णपरमं पाणी णो पमादे कयाइ वि। आयगुत्ते सदा वोरे जायामायाए जावए // 10 // विराग स्वेहिं गच्छेज्जा महता खुड्डएहि वा। आगति गति परिण्णाय दोहि वि अंतेहिं अदिस्समाणेहि से ण छिज्जति, ण भिज्जति, ण डज्मति, ण हम्मति कंचणं सव्वलोए / 1. आचा० शीला० टीका पत्रांक 148 2. अध्ययन 6 3. 'मुणी कारणं' इस प्रकार के पदच्छेद किये हुए पाठ के स्थान पर 'मुणिकारणं' ऐसा एकपदीय पाठ चूर्णिकार को अभीष्ट है / इसकी व्याख्या यों की गई है वहाँ-तत्य मुणिस्स कारण, अद्दोहणातीति मुणिकारणाणि ? ताणि तत्य ण संति, "ण तत्थ मुणि कारणं सिया"तत्थ वि ताव मुणि कारणं ण अत्ति ।--क्या वहाँ (द्रोह या पाप) नहीं, हुआ, उसमें मुनि का कारण है ? द्रोह न हुए, इसीलिए वहाँ वे मुनि के कारण नहीं हुए हैं / शायद उसमें मुनि कारण नहीं है। वहाँ भी मुनि कारण नहीं है। 4. नागार्जुनीय वाचना में यहाँ अधिक पाठ इस प्रकार है "विसयम्मि पंचगम्मी वि, दुविहम्मि तियं तियं / भावओ सुठु जाणित्ता, से न लिप्पइ दोसु वि॥' ----शब्दादि पांच विषयों के दो प्रकार हैं---इष्ट, अनिष्ट / उनके भी तीन-तीन भेद हैं-हीन, मध्यम और उत्कृष्ट / इन्हें भावतः / परमार्थतः भली-भांति जानकर वह (मुनि) पाप कर्म से लिप्त नहीं होता, क्योंकि वह उनमें राग और द्वेष नहीं करता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org