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शक्ति के प्रभाव को व्यक्त किया जिसके नाम पर मैस्मैरिज्म का जन्म हुआ। आगे भौतिक उन्नति के युग का श्रीगणेश होने से ये विचार पीछे रह गये । ब्रेड एवं बीड ( १८३०-४०) ने इनको स्पष्ट सुझाव द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है यह बतलाया और उसने हिप्नाटिज्म नामक नया शब्द उपस्थित किया। चार्कट ने इसका उपयोग करके बतलाया कि कैसे किसी को हिस्टीरिया उत्पन्न किया जा सकता है या कैसे उत्पन्न हिस्टीरिया को ठीक किया जा सकता है। उसने यह भी कहा कि मस्तिष्क धातुओं में इन लक्षणों की उत्पत्ति से विह्रास भी हो जाता है। रिचर ने इस पर
और प्रयोग किए । हीडनहीन ने हिप्नोसिस ( मूर्छा ) की उत्पत्ति मस्तिष्क क्रिया के नष्ट हो जाने से बतलाई। ___ इसी सुझाव को बेबिन्स्की और फ्रोमेण्ट ने और भी स्पष्ट किया कि सुझाव का प्रभाव किसी विचार को उत्पन्न करने में होता है यह विचार (आइडिया ) एक ऐसी गमनशील शक्ति बन जाता है जो मूर्छा के लक्षण उत्पन्न कर देता है। कुए और बडुइन ने इन विषम सुझावों को आत्मसुझाव का रूप दे दिया जिसके अनुसार एक विचार जो किसी दूसरे व्यक्ति में पहुँचाया जाता है वह एक विचार प्रत्यावर्तन शक्ति से युक्त होता है। यही शक्ति उसे स्वीकृति के लिए बाधा करती है। डूबौइस और डेजराइन ने सुझाव के स्थान प्रोत्साहन ( Persuation ) की महत्ता मानस-चिकित्सा की दृष्टि से अधिक उपयोगी ठहराई है। जिसके अनुसार रोगी को कुछ विचार दिये जाते थे जिनका प्रभाव उपयुक्त हो पर इसके लिए रोगी का सहयोग भी अपेक्षित माना जाता था। वे उसकी व्यवसायात्मिका बुद्धि के अनुकूल विचार उपस्थित करते थे। इन विचारों के प्रति रोगी का उत्साह कितना बढ़ा है इसे डेजराइन ने अधिक महत्त्व दिया जिसके परिणामस्वरूप एडलर का मानस-शास्त्र प्रकट हुआ। रोजानोफ ने भी एडलर के अनुसार मानस रोग में शारीरिक दौर्बल्य, चरित्र में विकार तथा उत्तेजनात्मक वातावरण को स्वीकार करके दुर्बलवाद (Invalidism) को लक्ष्यप्राप्ति का एक साधन माना । जैनेट ने बेबिन्स्कीय विचारधारा में थोड़ा पृथक्त्व प्रकट किया। उसके अनुसार हिस्टीरिया की विसंज्ञता वास्तविक विसंशता नहीं होती। उसने एक मानसिक तनाव की स्थिति स्वीकार की है जिसके ऊपर व्यक्तित्व (Personality) को व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी है। उसके अनुसार मस्तिष्क की क्रिया का अवसाद, मानसिक शक्ति का पृथक्त्व और वहन इस पृथक्त्व का उस कार्य पर आधारित होना जो निरन्तर दुर्बल रहा है और जो कार्य कि रोगी के लिए बहुत कष्टदायक है तथा जो उत्तेजना की चरमावस्था में सबसे अधिक अनुभव में आ रहा था को हिस्टीरिया का कारण माना है।
इन मतों ने आगे चल कर मानस-विकृति-विज्ञान की तीन धाराएँ ग्रहण की हैं-एक बोइरक तथा वालगेसी की जिसमें हिप्नाटिस्म का पुनः उभाड़ है, दूसरी वुण्ट, पावलोव, बैक्टू, डनलप आदि द्वारा कण्डीशण्ड रिफ्लेक्सेज से सम्बन्धित होकर तीसरी स्वभाववाद में परिणत हो गई। इसका मनोवैज्ञानिक भाग ब्रमर और फ्रायड के द्वारा परिपुष्ट हुआ है। फ्रायड के विचारों का मार्टनप्रिन्स, मैकडूगल तथा रिवर्स नामक विद्वानों पर भी प्रभाव पड़ा है । जंग ने भी अपने प्रयोग किए हैं।
मानस-शास्त्र का रोगों की विकृति से सम्बन्ध बैठाने के लिए विद्वज्जन कृतसंकल्प हैं । मानस विश्लेषण ( Psycho-analysis) या अन्य पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। स्वतन्त्र नाडीमण्डल, ग्रन्थि-विहीन प्रणालियाँ तथा मानसिक व्यक्तित्व का आपसी क्या सम्बन्ध है इस पर बहुत अधिक विचार किया जाने लगा है। विश्वास तो यह है कि आगे चलकर शारीरिक विकृतियों के अध्ययन में मनोवैज्ञानिक महत्त्व भी सम्मिलित कर लिया जावेगा जो इस युग की युगानुरूप देन होगी।
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