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है कि गाय हमें दूध देती है, पर नहीं । वह दूध देती नहीं है, हमें बूँद-दर- बूँद उसे निकालना पड़ता है। गाय जो खुद देती है वह कुछ और ही होता है और जो हम प्राप्त करते हैं वह कुछ और होता है ।
ऐसा हुआ - एक राजा के समक्ष किसी ने गौ-माता की प्रशंसा की और कहा, आपके राज्य में सब कुछ है, धन है, धान्य है, पर गाय नहीं है । आप गाय मँगवाइए । वह अमृत जैसा दूध देती है, जिसे पीने से पौष्टिकता बढ़ती है, बल-वृद्धि होती है। इसलिए आप बहुत-सी गायें मँगवा लीजिए। राजा ने अभी तक गायें देखी नहीं थीं, सो परदेश से विशेष ऑर्डर देकर गायें मंगवाईं। राजमहल से ही अनुचरों को आदेश दिया कि गाय जो कुछ देती है, ले आओ । स्वर्ण - थाल लेकर अनुचर गायों के पास पहुँचे और थोड़ी देर बाद वापस आकर स्वर्ण - थाल देते हुए राजा से बोले- 'राजन् ! गाय ने यह दिया है ।' राजा ने नाक के पास ले जाकर सूँघा तो नाक बदबू से भर गई । बोला –छि:छि: गाय यह देती है ! सोचा - कहीं मेरे अनुचरों ने गलती न कर दी हो, इसलिए दुबारा उन्हें गायों के पास भेजा। थोड़ी देर बाद अनुचर वापस आकर बोलेराजन् ! गाय ने इस बार यह दिया। राजा ने उसमें से थोड़ा उठाया और मुँह में रखा, लेकिन थूक दिया और कहा - बड़ा गंदा और दुर्गन्धित है।
अब उस व्यक्ति को बुलाया गया जिसने गायों को लाने की सलाह दी थी। अब तो इसे दंड दिया जाना चाहिए क्योंकि उसने तो कहा था कि गाय अमृत जैसा दूध देती है, जबकि गाय ने तो यह मल-मूत्र - गोबर दिया है। गाय ने जो दिया है वह तो दुर्गंध से भरा हुआ है। तब व्यापारी ने कहा- राजन् ! जीवन में किसी भी चीज को प्राप्त करने का सही तरीका आना चाहिए। अगर लेने का तरीका नहीं आता तो गाय से भी हमें दुर्गंधित चीजें ही मिलेंगी और लेने का तरीका आ जाए तो उससे हम अमृत प्राप्त कर सकते हैं। तब व्यापारी गाय के पास गया और राजा के पीने के लिए धारब-धार दूध निकालता है, गरम करके थोड़ी मिश्री मिलाता है और पीने के लिए राजा को देता है । व्यापारी कहता है 'राजन् ! गाय यह देती है, चखिए । राजा चखता है और कहता है - वाकई, यह जो तूने पिलाया है, अमृत के समान है।
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योग से भी हम जीवन में किस तरह प्लस परिणाम उपलब्ध कर सकते हैं इसका तरीका आना चाहिए क्योंकि योग भी जीवन के लिए अमृत है। जीवन के पास अगर केवल जीवन है, अमृत नहीं तो ऐसा जीवन केवल चलता-फिरता शव हो जाएगा। लेकिन यदि जीवन के पास योग नाम का अमृत है तो जीवन न केवल भौतिक रूप में सुखी होगा, वरन् आध्यात्मिक चेतना का मालिक बनाते हुए हमें प्रभु
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