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कण-कण में....
संत नामदेव को देखो - रोटी बनाकर रखी थी कि एक कुत्ता आया और रोटी उठाकर चल दिया तो वे उसके पीछे घी का कटोरा लेकर दौड़े कि हे प्रभु! रोटी रूखी है, आप ऐसे न खाएँ, थोड़ा घी भी ले जाएँ। आगे कहते हैं - तेरा-मेरा एक रूप है फिर प्रभु तुमने श्वान की शक्ल क्यों बना ली और मुझे इंसान की चुनरिया ओढ़ा दी ? तू और मैं तो एक ही हैं यह बाहर का चोला है जिसमें तू श्वान और मैं इंसान नज़र आता हूँ । अब तू और मैं अलग नहीं हैं, यह भेद ही गिर गया है ।
कण-कण में है झाँकी भगवान की । किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की ॥ नामदेव ने पकाई रोटी कुत्ते ने उठाई पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे नाथ रूखी तो न खाओ, थोड़ा घी तो जाओ अपना मुखड़ा क्यों मुझसे छिपा रहे ? तेरा मेरा एक रूप, फिर काहे को हुज़ूर तूने शक्ल बना ली यह श्वान की मुझे ओढ़नी ओढ़ाई इंसान की ।
जब तक इंसान घड़े में पानी लेकर चलता है तब तक लगता है यह पानी मेरा है, मेरा है। लेकिन जब कोई सरोवर की तरफ बढ़ता है और संयोग से उसका मटका फूट जाए तो वह पानी सरोवर के जल में ही समा जाता है । जब मैं का विचार मिट जाता है, विकार और वासनाओं का कोलाहल हट जाता है तब शांत, शून्य मौन, आनंदपूर्ण लयलीनता की स्थिति बन जाती है तो फिर फूटा कुंभ जल - जल ही समाना। जब तक मेरेपन का आरोपण है, माया के मिथ्यात्व का घड़ा बना हुआ है, तब तक मैं, मैं रहता है ।
स्मरण रहे लोग मरते हैं, प्यार कभी नहीं मरता । जिसने भी विकास किया अन्ततः मिट्टी में ही समा गए । दुनिया में किसका विकास रहा है। हम जानते हैं गांधी जी बहुत महान हुए लेकिन उन्हें कब तक ज़िंदा रख सकोगे। महावीर से लेकर गांधी तक न जाने कितने लोग पैदा हुए और उनमें कई लोग महापुरुष भी हुए होंगे । प्रतीक के रूप में कुछ नाम याद रख लिए जाते हैं । गांधी केवल नाम नहीं, एक सिद्धांत है, जीवन-दर्शन है। गांधी तो मर चुके हैं। लोग मरते हैं, पर सत्य कभी नहीं
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