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नकारात्मक परिणाम क्यों आते हैं? वास्तव में शिव का तीसरा नेत्र दुश्मनों के संहार के लिए है। जिनके भीतर अशिव का निवास है उस अशिव का नाश करने के लिए शिव-नेत्र का उपयोग है। हमारे मन की विल-पावर को, मन नामक महान लेकिन सूक्ष्म ऊर्जा को विस्फोटक बनाने में तीसरा नेत्र सहयोगी है। यह छठी इन्द्रिय कहलाती है। इसलिए जब कोई होनी या अनहोनी होने वाली होती है तो हमें छठी इन्द्रिय के द्वारा पूर्वानुभूति होती है। वास्तव में इस केन्द्र द्वारा हमारी बुद्धि तक संदेश पहुँचता है और हमें उस होनी या अनहोनी का अहसास होने लगता है। छठी इन्द्रिय सक्रिय होकर हमें सावधान कर देती है। अगर हम ललाट प्रदेश पर ध्यान कर रहे हैं तो मैं कहूँगा कि यहाँ सूर्य का ध्यान करो। ध्यान में उतरते समय प्रकाश का ध्यान करना चाहिए। हृदय-प्रदेश पर ध्यान करें तो ईश्वरीय ज्योति का ध्यान करें। सबह ललाट प्रदेश पर सूर्य के प्रकाश का और सायंकाल में ध्यान करते समय चंद्रमा के प्रकाश का ध्यान करें। सूर्य का प्रकाश ऊर्जा और चंद्रमा का प्रकाश हमें शांति देगा, शीतलता देगा।
जिन्हें अपनी प्रकृति चिंतापूर्ण, तनावपूर्ण ज़्यादा लगती है, वासना से अधिक घिरे रहते हैं उन लोगों को चंद्रमा के प्रकाश का ध्यान करना चाहिए ताकि उनके भीतर शीतलता का संचार हो।शीतल प्रकाश का ध्यान करें। जब हम त्राटक करते हैं दीपशिखा पर तब दस मिनट बाद नेत्र बंद कर लेते हैं और ललाट पर वह ज्योति छा जाती है। ज्ञान-चेतना का द्वार है ललाट-प्रदेश । ज्ञान-चेतना को जाग्रत करने के लिए ललाट-प्रदेश पर ध्यान करना चाहिए, लेकिन इस केन्द्र पर ध्यान करते समय खिंचावपूर्ण स्थिति न रखें। अपने दिमाग पर किसी प्रकार का दबाव डालते हुए एकाग्रता न लाएँ अन्यथा दिमाग की कोशिकाओं पर जोर पड़ सकता है। यही वजह है कि मैं हृदय पर ध्यान करने की सलाह देता हूँ। पहले हृदय के साथ एकाकार हों। जब हमें लगे कि ईश्वरीय प्रकाश, भले ही पहले कल्पना कर रहे हों धीरे-धीरे वह अनुभूति भी बन जाएगा, तब हम ललाट प्रदेश पर ध्यान करें, तब वह ध्यान हमें सिद्धों से, बुद्धों से, मुक्त चेतनाओं से जोड़ेगा। उन चेतनाओं से इकतार होने का माध्यम बनेगा।
जब हम निजता की खोज का भाव अपने भीतर गहरा कर लेंगे, उसे प्राथमिकता देंगे तब यह बोध हो जाएगा कि धर्म क्या है - वत्थु सहावो धम्मो। आपका धर्म क्या है - अपनी निजता को धारण करना न कि धन को, पत्नी को, व्यापार या संसार को धारण करना। जब यह तत्त्व हमारे भीतर प्रधान हो जाएगा,मन में, दिल में, दिमाग में समा जाएगा तब हृदय में आत्म-ज्ञान प्राप्ति के भाव से ध्यान
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