Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 182
________________ निष्पाप हुआ जा सकता है, बशर्ते वह अपने पापों का अहसास कर ले और उन पापों का विसर्जन करने के लिए गंगा में डुबकी लगाएगा तो निश्चय ही वह निर्मल, निष्पाप और पुण्यवान होगा।उसके पाप धुल जाएँगे। ___ संत की नौका में, साथ चल रहे युवक-युवतियों ने जैसे ही देखा कि अंधेरा घिरने लगा है वे मटरगश्ती करने लगे, बेहूदा हरकतें करने लगे। किसी ने अपने कपड़े उतारे और संत की ओर फैंक दिए, किसी ने चप्पलें फैंकी, नाच गाना, ऊधम, मस्ती करने लगे। उनकी बदतमीजी बढ़ गई तभी आकाश में आवाज़ गूंजी कि संतप्रवर! अगर आप कहें तो इन सभी को अभी नदी में डुबो दें।संत कुछ न बोले। वे अपनी प्रार्थना में लीन रहे, पर लड़के-लड़कियाँ आकाशवाणी सुनकर घबरा गए। कंस भी आकाशवाणी सुनकर घबरा गया था और अपने बहन-बहनोई देवकीवसुदेव को कारागार में डाल दिया था। थोड़ी देर बाद जब संत की प्रार्थना पूरी हुई तो देखा कि सब लोग घबरा रहे हैं। उन्होंने कहा - बच्चो, घबराओ मत, शांति से बैठ जाओ, कुछ नहीं होगा। तभी आकाश से दूसरी घोषणा हुई कि - मेरे प्रिय, जो पहले घोषणा हुई थी उसे तुमने लागू नहीं होने दिया। लगता है तू पहचान गया कि पहली वाली आवाज़ किसकी थी।संत ने कहा – हाँ प्रभु, मैं पहचान गया कि पहले वाली भाषा और आवाज़ किसकी थी। पुनःआवाज़ आई - वत्स, भगवान की भाषा को वही समझ सकता है, जो शैतान की भाषा को समझ सकता होगा। ___ 'डुबा देने' की भाषा शैतान की भाषा हो सकती है, भगवान की भाषा तो होगी कि अगर तू कहे तो मैं इन सबकी बुद्धि पलट दूँ।मति सन्मति कर दूँ। जिसने शैतान के कार्यों को समझा कि क्रोध आया यह शैतान का कार्य था, किसी ने गाली दी यह शैतान का कार्य था, किसी ने हमें उत्तेजित किया यह शैतान हमारी परीक्षा ले रहा था और हम फिसल गए कि शैतान अपना कार्य कर गया और हम पुनः-पुनः अपनी निजता से वंचित हो गए। निजता की खोज ही धर्म है। आत्म-स्वरूप की खोज, आत्म-स्वरूप की उपलब्धि, जिसने इस जीवन को धारण कर रखा है, जिसके रहते हम जीवित हैं और जिसके निकल जाने के बाद काया छूट जाने वाली है उससे प्रेम करना, उससे योग साधना, उससे अपनी प्रीत लगाना ही साधक का धर्म है। एक ही सुरति, एक ही स्मृति, एक ही याद, आँखों में एक ही सुरमा रखिए कि मैं काया से भिन्न भी कुछ हूँ। | 183 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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