Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 181
________________ हो, सो अपने नाम की डुगडुगी बजाने के लिए धर्म के नाम पर कई-कई आयोजन करवाता है। नए सिरे से मायाजाल में फँसता है इसलिए दस साल बाद नाम भी बदल ही दिया जाना चाहिए। दुनिया में शैतान और भगवान दो तत्त्व हैं । शैतान हमें मदारी के डमरू की तरह भटकाता रहता है। गृहस्थों को भी, संतों को भी। भगवान की पुकार हम सुन नहीं पाते, उसकी ओर ध्यान नहीं दे पाते क्योंकि निजता की ओर हमारा ध्यान नहीं है तो शैतान हम पर हावी हो जाता है, अपना प्रभाव जमा लेता है और हमें फँसा लेता है क्योंकि हम दुनिया में इन्द्रियों से जीते हैं। शैतान इन इन्द्रियों के द्वारा, मन के द्वारा अपना काम करता है। दोनों ही अदृश्य और निराकार हैं।भगवान के लिए तो चेतना का, आत्मा का द्वार है लेकिन शैतान के सामने कई द्वार हैं - इन्द्रियों के, चित्त के,मन के द्वार। हम लोग निजता पर ध्यान नहीं देते इसलिए भगवत्ता के मालिक नहीं बन पाते। इन्द्रियों में, मन और चित्त के घेरों में उलझे हुए रह जाते हैं। जिसने शैतान की भाषा समझ ली वही जान सकेगा कि भगवान की भाषा क्या होती है। जो शैतान के मर्म को समझता है वही भगवान के मर्म को समझ सकेगा। कहते हैं - एक संत, नाव में बैठकर नदी पार कर रहे थे। उनके साथ अन्य बहुत से युवक व युवतियाँ भी थे। जैसे ही संध्या होने लगी संत अपनी पूजा-प्रार्थना के लिए तत्पर हो गए। प्रभु प्रार्थना में लीन उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे। स्मरण रहे, जब तक प्रार्थना आँसुओं के द्वारा अभिव्यक्त न हो तब तक वह प्रार्थना केवल रटी-रटाई शब्द-रचना होती है। जब तक प्रार्थना और गीत या भजन कंठ से निकलकर आँखों से व्यक्त न हो जाए तब तक वह भजन नहीं केवल परम्परा का निर्वाह है। जैसे शराबी रोज शराब पी लेता है या सिगरेट पीने वाला धुआँ छोड देता है ऐसे ही पुजारी भी रोज वही रटे-रटायेस्तोत्रऔर प्रार्थना, गीत और भजन बोल लेता है। जो भजन दिल से न उठे, कंठ से निकलकर आँखों से न झरे तब तक वह भजन, भजन नहीं। भगवान मुँह का नहीं सुनते, वे तो दिल की बात आँखों के जरिये सुनते हैं। उनका सुनने का अपना तरीका है। केवल शब्दों के भजन से आत्मा में निर्मलता नहीं आती वरन् आँखों से दो आँसू झरने से चित्त हल्का होता है, आत्मा के पाप धुलते हैं। ये आँस गंगा-स्नान का आनन्द देते हैं। गंगा के घाट पर कितने मेले लगते हैं, हज़ारों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं। अगर ये लोग निष्पाप और पुण्यात्मा हो गए हैं तो पूरी दुनिया के लोगों को गंगा में डुबकी लगवा देनी चाहिए, पर ऐसा नहीं होता, हम जैसे पहले होते हैं वैसे ही पापी रह जाते हैं। गंगा में डुबकी लगाने से 182 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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