Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 184
________________ में तस्वीर देख रहा था कि एक विदेशी कलाकार व्हेल मछली की पीठ पर करतब दिखा रही है। हमारे यहाँ बच्चे को स्विमिंग पूल में भेजते समय कहते हैं ध्यान रखना पैर न फिसल जाए और विदेश में बच्चे को समुद्र में उतार देते हैं और परवाह नहीं करते। जो बच्चा बचपन से ही समुद्र की लहरों से संघर्ष करना सीख जाएगा वही बड़ा होकर जिंदगी के संघर्षों को पार कर पाएगा। भेड़ों के टोले में एक शेर भेड़ का दूध पीने लगा, मिमियाने लगा, जिंदगी चलती रही। हम लोगों की भी चल रही है। गुरु किसी को भगवान नहीं बनाता, न ही किसी को मोक्ष दिलाता है। वह केवल एक कार्य करता है कि वह हमें केवल हमारी निजता क्या है, यह बताता है। वह हमें हमारी वास्तविकता और त्रैकालिक सत्यता बताता है कि तू भेड़ नहीं शेर है – पर यह कोई मानने को तैयार नहीं होता। तब शेर उसकी गर्दन पकड़कर सरोवर के किनारे ले जाता है और उसको उसकी परछाई दिखाता है। तब भी वह घिघियाता है। शेर अपनी परछाई भी दिखाता है, जोर से दहाड़ता है। भेड़ के झंड में रहे हुए शेर ने उसकी परछाई देखी तब उसे लगा कि वह भेड़ नहीं है वह भी शेर है। अपनी निजता को, स्वरूप को पहचान कर वह भी जोर से दहाड़ उठा और वापस भेड़ों के झुंड में नहीं लौटा। श्मशान भी सरोवर की तरह है जिसमें जाने पर भगवान दिखाते हैं कि यह है हमारी जिंदगी का परिणाम, यह मौत है। यह काया जिसे पोषित करते हैं, शृंगारित करते हैं,सजाते-संवारते हैं, भगवान हमारे घर में किसी सदस्य की मौत को भेजकर यही सबक देना चाहते हैं कि यह है हमारी वास्तविकता। जैसे उसकी काया वैसी ही हमारी काया, जैसे वह मिट्टी, हम भी मिट्टी, जैसे वह जाते समय कुछ भी न ले जा सका वैसे ही हमने कितना भी क्यों न जोड़ रखा हो कुछ भी न ले जा सकेंगे। भले यहाँ हमारे पास अन्न के भंडार हों, पर साथ में तो चुटकी आटा भी न ले जा पाएँगे। यहाँ पर ए.सी.है, वहाँ नीम की छाँव भी नसीब नहीं होगी। भगवान सब दिखाते हैं, पर हम जन्मों की भेड़, देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। कोई कहता है तो मान लेते हैं कि हम आत्मा हैं, परमात्मा के अंश हैं, पर कोई स्वर्ग का सुख आकर देना चाहे तो इंकार कर देते हैं। जिस अवस्था में हैं, उसी में सड़ते रहते हैं। यहाँ की मोह-माया, यहाँ के दुःखों से निकल नहीं पाते। हम ऐसे उलझे हुए हैं कि अगर सामने श्मशान भी देख लें, मौत भी देख लें तो भी हिलते नहीं हैं, कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता। जैसे हॉस्पिटल के डॉक्टर को किसी के मर जाने पर बहुत अधिक फ़र्क नहीं पड़ता। एक डॉक्टर था, खूब कमाता था। कोई मर भी जाता तो उसे कुछ न होता था। 185 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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