Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 183
________________ यह बोलने वाला कोई और है, विचारक कोई और। जीवन में अध्यात्म का जन्म ही तभी होता है जब यह जिज्ञासा उठने लगती है कि हम कौन हैं? इन पर्यायों को धारण करने वाला, इन पदार्थों को बनाने वाला कौन है? मैं पर्याय नहीं हूँ क्योंकि पर्याय बदल जाता है, पदार्थ भी नहीं हूँ क्योंकि पदार्थ बिखर जाता है। क्या मैं भी बिखरने वाला तत्त्व हूँ या जो बिखर रहा है वह तत्त्वों को धारण करने वाला मैं कोई और हूँ । 'मैं' के दो अर्थ हैं - एक हमें निजता की ओर ले जाता है और दूसरा अहंकार की ओर। एक 'मैं' हमें रावण बनाता है, दूसरा 'मैं' राम की ओर ले जाता है । 'मैं' घातक भी है और सहायक भी है। 'मैं' आत्मघातक भी है और आत्मसाधक भी है। जब हम साधना के, प्रभु के दिव्य मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं तो हमें अपने निज स्वरूप का ध्यान रखना चाहिए। एक पुरानी कहानी है - आप सब ने भी पढ़ी-सुनी होगी कि एक शेर का बच्चा अपनी माँ से बिछुड़ गया और भेड़ों के झुंड में जा मिला । वहीं भेड़ का दूध पीकर मिमियाने लगा उन्हीं की तरह रहने लगा । इस तरह एक शेर भी भेड़ बन गया । यह सबसे अधिक प्रचलित आध्यात्मिक कहानियों में से एक है, पर इससे आज तक कोई प्रेरणा नहीं ली गई। कहानियाँ तो प्रतीकात्मक होती हैं । बात को समझने के लिए होती हैं । वरना इतिहास में क्या हुआ, किसने जाना। महान पुरुषों के जीवन को हम लोगों ने देखा तो नहीं है, पर उनका उल्लेख इसलिए किया जाता है कि उन्होंने जो प्रकाश-किरणें पाईं वे कहानियों के रूप में हम तक पहुँची हैं, वे शायद हमें कोई रास्ता दिखाने में मददगार बन जाए, हमें कोई प्रेरणा मिल जाए। शेष तो इन शास्त्रों का, पुस्तकों का बहुत अधिक मूल्य नहीं है । सब कागज के पुलिंदे हैं, पर इनका मूल्य इसलिए है कि इनके जरिये प्रकाश की थोड़ी-सी किरण ले सकें । जैसे सूरज उगता है साँझ को अस्त हो जाता है इस दरम्यान अगर उसका उपयोग न किया जाए तो उसके उगने और अस्त होने का हमारे लिए क्या अर्थ? उपयोग करो तो गुरु का भी उपयोग है अन्यथा गुरु भी क्या काम का उपयोग करो तो मंदिर का पत्थर भी हमें परमेश्वर तक ले जा सकता है अन्यथा स्वयं परमेश्वर भी हमारे सामने आ तो भी कुछ न मिल पाएगा। पुरानी कहानियाँ भी अर्थ रखती हैं इसलिए तो उन्हें याद करते हैं। यूँ तो हम स्वयं को अरिहंत की, महावीर की संतान कहते हैं, पर हम क्या हैं, यह हम ही बेहतर जानते हैं। एक चूहा देख लें तो डर जाते हैं, छिपकली देख लें तो हिल जाते हैं । हमें बचपन से ही डर की बातें बताई जाती हैं, निर्भयता की नहीं । कल ही समाचार-पत्र 184 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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