Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ मरता। प्रभु से किया गया प्रेम तो कभी नहीं मरता। तुलसी हो या सूर, मीरा या नानक सभी प्रभु से प्रेम करने वाले लोग हैं। नज़र मीरा की निराली, पीके ज़हर की पियाली ऐसा गिरधर बसाया हर श्वास में, जब आया काला नाग, बोली धन्य मेरे भाग प्रभु आप आए साँप के लिबास में। आओ-आओ बलिहार, काले किशनकुमार मेहरबानियाँ हैं उसी मेहरबान की, धन्यभागी हूँ मैं आपके अहसान की। कण-कण में..... मैं धन्य भागी हूँ कि आज आप साँप के लिबास में आए हैं, मैं आपकी शुक्रगुज़ार हूँ। इसी तरह सूरदास, निगाह जिन की थी खास ऐसा नैनों में नशा था हरिनाम का, जब नैन हुए बंद, तब मिला वो आनंद आया नज़र नज़ारा घनश्याम का हर जगह वो समाया, सारे जग को बताया आई आँखों में रोशनी जब ज्ञान की देखी झूम-झूम झलकियाँ भगवान की। कण-कण में.. कोई-कोई सा ही उसे पहचान सकता है। गुरु नानक-कबीर, नहीं जिनकी नज़ीर देखा पत्ते-पत्ते में निरंकार को नज़दीक और दूर वही हाज़िर हुजूर यही सार समझाया संसार को नत्थासिंह ये जहान, शहर गाँव बियाबान मेहरबानियाँ हैं उसी मेहरबान की, सारी चीजें हैं ये एक ही दुकान की कण-कण में.... सारी माया उस एक ऊपरवाले की है। जो भेद दिखाई देते हैं वे बाहर के हैं | 177 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194