Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 177
________________ और ये भेद बहुत विरोधाभास खड़ा करते हैं । भीतर तो कोई भेद नहीं है वहाँ सब अभेद है ।जब मैं और मेरा खो जाता है तो केवल वही एक रह जाता है। सबका मालिक एक अर्थात् जो अन्तर्घट में, भीतर के सागर में उतरकर धैर्यपूर्वक अपनी धारणा को प्रगाढ़ करते हुए हृदय में ध्यान करता है तब सारे पुद्गल-परमाणु बिखर जाते हैं और हृदय का कमल साकार हो जाता है। निराकार को साकार करने का यही तरीका है, दिल से प्रीत करो। दिल एक मंदिर है, प्यार की जिसमें होती है पूजा, यह प्रीतम का घर है। अपने प्रीतम से प्रेम करें। परमात्मा की प्रीत को अपने दिलो-दिमाग में बसाते हुए हृदय की गुफा में, हृदय के सागर में उतरें। बार-बार वहाँ जाएँ पता नहीं कब वहाँ दीप जल जाए और निराकार साकार हो जाए। अगर विश्वास और प्रीत है तो अपने भीतर चलो वहाँ छिपे हुए मंदिरों के नगर में जहाँ शिखर भी है, घंटी की ध्वनि भी है, संगीत भी है। आत्म-ज्ञान प्राप्त करना जीवन की सफलता है लेकिन प्रभु से प्रीत लगाना ज्ञान प्राप्त करने से भी बड़ी उपलब्धि है। आप सभी प्रभु से प्रीत लगाने में सफल हों।आपके अन्तर्घट में विराजित परमात्मा को प्रेमपूर्ण प्रणाम समर्पित करता हूँ। श्री प्रभु शरणम्। 178/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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