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हो जाता है ।
यदि हम अविद्यावान या अज्ञानी बनकर अपनी वृत्तियों का पोषण करते रहे तो जन्मों-जन्मों तक अपनी वृत्तियों से मुक्त नहीं हो पाएँगे। जिन वृत्तियों को हम आज पोस रहे हैं पूर्व जन्म में भी हमने इन्हीं वृत्तियों का पोषण किया। यदि यही सिलसिला जारी रहा तो हमारा हर जन्म पूर्व जन्म का ही एक पुनर्संस्करण होगा। यदि हम होश और बोध के साथ अपनी वृत्तियों से साक्षात्कार करेंगे, उनका क्षय करेंगे तो धीरे-धीरे बोध की गहराई के साथ वृत्तियों से बाहर निकलते जाएँगे और हमारे भीतर सच्ची शांति का प्रकाश फैलने लगेगा । हम संबोधि के संवाहक हो जाएँगे। हम स्वयं मूल्यांकन कर पाएँगे कि पहले भी वृत्ति का उदय होता था अब भी वृत्ति का उदय होता है लेकिन तब क्लेशकारी वृत्तियाँ मूर्तरूप लेती थीं और अब अक्लेशकारी वृत्तियाँ उदित होती हैं। पहले छोटी-सी बात हो जाती तो तीन दिन तक हावी रहती थी, पलक झपकते ही गुस्सा आ जाता था, छोटी-छोटी बातों से संबंधों में दरार आ जाती थी लेकिन अब अगर कोई कुछ कहता है तो बात ही असर नहीं करती। क्रोध का निमित्त सामने होता है, पर हमें क्रोध नहीं होता। भोग का निमित्त सामने रहता है, पर हमारे भीतर भोग का आकर्षण नहीं होता। यही तो है योग । हिमालय में रहने से भला किसी क्रोध या भोग की कसौटी होती है ? चित्त यदि राग-द्वेष के उद्वेलन से ऊपर उठ जाए तो फिर चाहे आप गाँव में रहें या गुफा में, घर पर रहें या मज़ार पर । इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता । बस, ज़रूरत है केवल जागरूकता की, सचेतनता की, मुक्ति की अभिलाषा की ।
ज्यों-ज्यों हमारा बोध और योग गहरा होता जाएगा, वृत्तियों के प्रति हमारी जागरूकता, हमारी संप्रज्ञाशीलता गहरी होती जाएगी, हम वृत्तियों के प्रभाव से मुक्त होते जाएँगे। अंधेरा तभी तक तो प्रभावी रहता है जब तक प्रकाश का उदय नहीं हो जाता। दुनियाभर के अंधेरे को दूर करने के लिए होश और बोध का, अभ्यास और अनासक्ति का एक सूरज काफ़ी है ।
योग विशुद्ध रूप से व्यक्ति को उसके स्वभाव के साथ जोड़ता है, स्वभाव में परिवर्तन लाता है । स्वभाव में परिवर्तन लाना ही योग का पहला चमत्कार है । हो सकता है हमारा अंतरमन, हमारा चित्त गँदला हो, पर क्या आपने नहीं सुना कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा !' अंतरमन अगर गंगा की तरह नहीं है, तो इसे गंगा की तरह बनाया जा सकता है । चित्त की निर्मल स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए हम ध्यान का अधिक-से-अधिक अभ्यास करें, सचेतनता को अधिक-से
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