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प्रकाशित करने के लिए, ध्यान, साधना के मार्ग को आलोकित करने के लिए ये दीपक बहुत उपयोगी हैं । लघुता में प्रभुता बसै - बीज छोटा-सा ही होता है, लेकिन पूरे वृक्ष की संभावनाओं को समाहित किए रहता है। योगसूत्र भले ही छोटे-छोटे लगते हों, पर हमारी ध्यान-साधना में बहुत बड़ी क्रांति कर सकते हैं। हम योगसाधना साध सकते हैं, अपने जीवन के तनावों को दूर कर सकते हैं, जीवन के अज्ञान, अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष, मृत्यु के भय पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, चित्त के क्लेश-संक्लेशों को दूर कर सकते हैं, दुःख दौर्मनस्य, वैर-वैमनस्य, मोहमृगतृष्णाओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। अगर हम योग को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं, हर समय हमारी आँखों में योग से प्यार करने की रोशनी रहे तो जीवन की सार्थकता पा सकते हैं।
हमारी इन्द्रियों की प्रवृत्तियाँ बाहर की ओर जुड़ी हुई हैं । जिह्वा भले ही दाँतों के बीच रहती है, हमेशा दूसरे तत्त्वों का स्वाद लेती है, लार मुँह में सतत रहती है, पर जिह्वा उसका स्वाद नहीं जानती।हमारे शरीर के भीतर सुगंध है या दुर्गंध, नाक ग्रहण नहीं करती। हमारे भीतर कैसी मांसपेशियाँ हैं, आँखें उन्हें नहीं देखतीं । हमारे दिल में जो धड़कन चलती है कान उसे नहीं सुनते। हमारा शरीर पूरा एक-दूसरे से सटा हुआ है, फिर भी हम उसके स्पर्श का अहसास नहीं करते क्योंकि इन्द्रियों का संबंध ही बाहर से है। हर तत्त्व की अपनी ग्रहण-शक्ति है, इसलिए जब हम ध्यान करते हैं तो यही कहते हैं कि अपनी इन्द्रियों को अपने में लौटा लाओ अर्थात् इनका संबंध जो बाहर से है उसे भीतर जोड़ लो। इसीलिए ध्यान करते समय हम अपनी पलकों को झुका लेते हैं, क्योंकि जिन पर सहज में अंकुश लगा सकते हैं उन पर तो अंकुश लगा सकते हैं। बाहर की आँखें बंद करके भीतर की आँख खोलने के प्रति जागरूक होते हैं। धीरे-धीरे पाँचों इन्द्रियों को अपने में लौटाते हैं।
एक बड़ा प्रश्न है कि जब हम ध्यान करने बैठें तो क्या करें? हमारा चित्त कैसे वश में हो जाएगा। जब आप ध्यान करें तो ब्रह्म मुहूर्त अर्थात् सुबह-सुबह चार-पाँच बजे करें तब बाहर की शांति में आपको प्राणायाम करने की ज़रूरत नहीं होगी और न ही प्रत्याहार को समझने की आवश्यकता होगी। अल सुबह बाहर के वातावरण के साथ स्वयं का शरीर भी शांत रहता है, लेकिन जैसे ही भोर होती है और चिड़ियाएँ चहचहाती हैं, पुष्प खिलते हैं तब हमारे शरीर के प्रत्येक अंग, प्रत्येक कोशिका भी ऊर्जावान बन जाती है और स्फुरणा से भर जाती है लेकिन जब आप सूर्योदय के साथ ध्यान करते हैं तो प्राणायाम भी करिये, चाहे तो ध्यान से पहले भी प्राणायाम कर
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