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करने वाले कायनात पर ध्यान दे रहे हैं। स्थूल पर नहीं सूक्ष्म पर स्वयं को जगाने का, लगाने का, पकाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
पहले तो स्थूल ही बोध में आएगा, महसूस और अनुभव होगा, दिखाई देगा पर ज्यों-ज्यों धारणा पकेगी, ध्यान शून्य होता जाएगा, त्यों-त्यों ध्यान में रही हुई प्राण-चेतना अपने-आप हमारे निकट होगी। नाभि-केन्द्र पर ध्यान करने से हमारे भीतर खास परिपक्वता आएगी। भीतर विशिष्ट गहराई आएगी। तात्कालिक उग्र प्रतिक्रियाएँ नहीं होंगी। हमारी शारीरिक क्षमता भी बढ़ेगी और हमारी दिमागी, आध्यात्मिक पाचन क्षमता भी नाभि पर ध्यान करने से बढ़ेगी। शारीरिक रूप से जो परिणाम योगासन या प्राणायाम देंगे वैसे ही परिणाम नाभि प्रदेश पर बाहर से भीतर या भीतर से बाहर ध्यान करने पर प्राप्त हो सकते हैं। तब यह माटी, माटी नहीं रहेगी। वहाँ से एक ज्योति उभरने लगेगी, प्रकट होने लगेगी।
आप सब भीतर के जाग्रत दीपक बन जाएँ, इतना ही अनुरोध है।
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