Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 164
________________ मध्य से मेरुदण्ड तक जो नाड़ी-तंत्र है और इसके भीतर की ऊर्जा का घनत्व अनाहत चक्र कहलाता है। इन चक्रों के भीतर की ऊर्जा एक-एक अंग को सक्रिय करती है। ये शरीर को संचालित करने वाली ऊर्जा की धाराएँ हैं। विशुद्धि चक्र - हमारा कंठकूप जो आगे से पीछे मेरुदण्ड तक है वहाँ विशुद्धि चक्र अवस्थित है। हमारे मेरुदण्ड के बीच में जो गैप है वहाँ है सुषम्ना नाड़ी। उसके दाहिनी ओर पिंगला और बायीं और इड़ा नाड़ी अवस्थित हैं। इन्हें सूर्य-चंद्र नाड़ियाँ भी कहते हैं। हमारे सारे चक्र मेरुदण्ड से जुड़े हैं। पीछे मूल है और आगे उसका विस्तार है। हम षट्चक्रों पर सामने से ध्यान करते हैं क्योंकि हमारी इन्द्रियाँ सामने की ओर जल्दी केन्द्रित हो जाती हैं। नाभि पर ध्यान करने से पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। पूरे शरीर तक ध्यान का प्रभाव पहुँचता है। मेरा अपना अनुभव है कि ध्यान की ऊर्जा शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाती है। मेरे स्पाइनल कॉर्ड में कुछ तकलीफ है जिसके कारण बायें पैर में कमजोरी रहती है। मुझे ज़मीन पर बैठने के लिए मना किया गया है, पर मैं ज़मीन पर आराम से बैठता हूँ, ध्यान भी जितनी देर चाहता हूँ, करता हूँ, बिना सहारे के बैठता-उठता हूँ। केवल इसलिए कि ध्यान पूर्ण सघनता से नाभि और अन्य चक्रों पर करता हूँ। मैं तो कहूँगा कि आप इधर-उधर ध्यान ले ही न जाएँ। सात-सात दिन का प्रयोग करें कि सात दिनों तक लगातार केवल नाभि-प्रदेश पर ध्यान करें। अपनी सम्पूर्ण मानसिक शक्ति, मानसिक चेतना को नाभि पर केन्द्रित कर दें। अगले सात दिन अनाहत चक्र हृदय कमल पर स्थित हो जाएँ। अगले सात दिनों तक भू-मध्य अर्थात् आज्ञाचक्र पर केन्द्रित कर दें। बीस-पच्चीस मिनट, आधा घंटा-चालीस मिनट, जब तक चाहें तब तक। चित्त इधर-उधर जाए तो उसे पुनः अपने स्थान पर लौटा लाएँ। जितनी देर तक हमारी धारणा, मानसिक एकाग्रता सधे लगातार एक ही बिंदु बनाए रखें। मानसिक चेतना को वहाँ पका रहे हैं, अपनी सजगता को, प्राण-चेतना को वहाँ रिफ्लेक्ट कर रहे हैं। ध्यान रखें प्राणायाम करने के बाद एक बिंदु पर ध्यान करने से ऊर्जा अधिक सघन और प्रगाढ़ हो गई है कि हम संभाल नहीं पा रहे हैं तो दूसरे बिंदु पर चले जाना चाहिए। जैसे ही हम हृदय या नाभि पर जाएँगे दिमाग का तनाव-स्ट्रैस सब समाप्त हो जाएगा। नाभि अर्थात् पानी का कुँआ, बस नीचे उतर गए। जो डिप्रेशन के शिकार हैं या अधिक चिंता से घिरे हैं, क्रोधी प्रकृति के, भोगी लोग, अपने हृदय और नाभि प्रदेश पर ध्यान करें। ऐसा करने से काया की स्थिति स्वस्थ व निर्मल होगी। हृदय पर ध्यान करने से व्यक्ति अपनी मूल चेतना से जुड़ेगा और उसका देहभाव कम होगा। हम काया पर नहीं इसे धारण | 165 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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