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निकल पड़े। यही स्वर कभी शंकर को, कभी रामानुज, कभी अरविंद, कभी कृष्णमर्ति और ओशो को भी सनाई दिया। यही स्वर मुझे भी सुनाई दिया और यही स्वर सभी आत्म-जागरूक लोगों को भी सुनाई दिया। मुझे जब इसका स्वप्न आया तो मैं भी उस सागर की ओर निकल पड़ा। वहाँ पहुँचा तो देखा कि न तो वहाँ मंदिर है, न परमात्मा है, न घंटियाँ हैं, न संगीत है लेकिन मैं वापस न लौटा और वहीं रुक गया। उन घंटियों के स्वरों को सुनने के लिए लालायित रहा। कई दिन, महीने और वर्ष बीत गए अचानक एक दिन ऐसा आया कि लेटा हुआ था, भीतर की आँख खुली और फिर वही घंटियों की आवाज़ आने लगी। मैं उठा, स्वप्न खंडित हुआ, आत्म-जागरूकता घटित हुई और देखा न केवल घंटियों की आवाज़ सुनाई दी वरन् शिखर भी उभर आया, धीरे-धीरे भीतर में मंदिर भी साकार हो गया। तब वह दिव्य दीदार हुआ जो कभी मीरा को, चैतन्य महाप्रभु को और तुलसीदास,सूर तथा ऐसे ही किसी भक्त को देखने को मिला और पाया वही आनन्द, वही सौन्दर्य, वही सच्चिदानंद। जब से यह संगीत सुना है तब से आज तक आनन्द ही आनन्द लेता रहा हूँ। बल्कि कहूँगा कि मैं आनन्द ही हो गया हूँ। भीतर के स्रोत खुलने पर पता चला कि सत्-चित् और आनन्द मैं ही हूँ। तब से व्याधि तन में हो सकती है मन में तो फिर भी समाधि रहती है। क्योंकि अब आनन्द मेरा स्वभाव बन गया है।
कोई भी व्यक्ति परमात्मा के मंदिर के संगीत का आनन्द ले सकता है, इस सौन्दर्य का, इस चैतन्य तत्त्व का आनन्द ले सकता है, लेकिन याद रहे यह सागर बाहर नहीं है। यह हमारे हृदय के भीतर व्याप्त है। परमात्मा का मंदिर भी कहीं और नहीं, हमारे अन्तर्घट में व्याप्त है। हमारे हृदय के सागर में उस परमात्मा का मंदिर छिपा हुआ है, डूबा हुआ है। अचानक कभी ढोलक की थाप उठती है, कभी अचानक बाँसुरी के स्वर सुनने को मिलते हैं, तो लगता है कोई हमें बुला रहा है। उस संगीत की ध्वनि को सुनकर हम चल भी पड़ते हैं, एक तरंग तो उठती है लेकिन संगीत टूट जाता है और हम जहाँ होते हैं, वापस वहीं लौट जाते हैं। लेकिन जिसके भीतर उस संगीत को लगातार सुनने की उत्सुकता बनी रहती है वे लोग अन्ततः उस संगीत का आनन्द लेने में सफल हो जाते हैं और जान जाते हैं कि वह संगीत बाहर से नहीं अपितु उनके अपने हृदय के मंदिर से, उनके ही अन्तर्घट से आ रहा था।
हम ले चलें निज को वहाँ, जो शांत सौम्य प्रदेश हो।
अन्तर्-गुहा में लीन हों, शिवरूप ही बस शेष हो॥ हम स्वयं को उस हृदय के सागर में, वहाँ छिपे हुए परमात्मा के मंदिर की
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