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सकते हैं।
प्राणायाम बहुत उपयोगी है, प्राणायाम करने से, पतंजलि की भाषा में - हमारी आत्मा पर जो प्रकाश के आवरण आए हुए हैं, जिसके कारण हमें अपना प्रकाश दिखाई नहीं देता, उन आवरणों का क्षय होता है। दूसरे, प्राणायाम करने से हमारे भीतर ध्यान की पात्रता बनती है, ध्यान करने की क्षमता निर्मित हो जाती है। प्राणायाम से साँस सधती है, साँसों के सधने से चित्त स्वयं के नियंत्रण में कर लिया। ध्यान साँसों और चित्त को अपने नियंत्रण में करने की कला है। जो शरीर विकारों से भरा है, बीमारियों का घर है उसे स्वस्थ करना पड़ता है। बीमारी अपने आप आ सकती है, पर स्वास्थ्य लाना पड़ता है। बीमारी के लिए प्रयत्न नहीं करना पड़ता, पर स्वस्थ रहने के लिए प्रयत्न करना होता है। मरने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता, पर जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। जीवन के लिए भोजन चाहिए, पर भोजन से अधिक हवा ज़रूरी है। पानी भी ज़रूरी है,जीने के लिए आयु की ज़रूरत है। जीने के लिए बहुत सारी चीजें चाहिए, पर मरने के लिए कुछ नहीं चाहिए।
जिनका मन ध्यान में नहीं लगता वे एक प्रयोग करें। अपने पूरे शरीर को तीन मिनट तक कंपन दें। अगर आपको योगासन नहीं आते तो अधिक फ़िक्र न करें। बस अपने शरीर को सिर से पाँव तक इस तरह से कम्पित कर डालें कि आपकी सोई हुई चेतना सक्रिय हो जाए और आसन का सहज में परिणाम मिल जाए। ध्यान करने के लिए 108 दफा 'ॐ' के सहज, शांत, मंद उच्चारण कीजिए। ऐसे ही जैसे कान्हा मुरली बजाते थे। उतने ही मीठे सुरीले अंदाज़ में ॐकार का उद्घोष कीजिए। मानो कि हम ॐ के रूप में मुरली बजा रहे हैं। लगता तो है कि हम'ॐ' बोल रहे हैं, पर हकीकत में हम साँसों की मुरली बजा रहे हैं । बैठकर दस मिनट तक ॐ के शांत मीठे उद्घोष कर रहे हैं। यह घोष स्वयं को अन्तर्लीन करने के लिए है। इस दौरान हम ध्वनि पर या कंठ-प्रदेश पर अपनी एकाग्रता साध सकते हैं, जहाँ से ध्वनि आ रही है वहाँ अपनी जागरूकता केन्द्रित कर सकते हैं। अब सवाल यह है कि दस मिनट की गणना कैसे हो तो हाथ में कोई माला ले लो, कमर, गर्दन सीधी कर लो, शरीर को अप्रमत्त दशा में ले आओ और एक-एक मणका आहिस्ता-आहिस्ता लयबद्ध घोष करते हुए खिसकाते जाओ। अपनी बाँसुरी का आनन्द लो। एक मिनट में अगर दस-ग्यारह उद्घोष करते हैं तो एक सौ आठ मणियों में अपने आप दस मिनट हो जाएंगे।
ये दस मिनट बहुत फ़ायदेकारक होंगे। पहला तो यही कि 'ॐ' के रूप में
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