Book Title: Yoga
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 157
________________ संसार को उपलब्ध किया जाता है, तभी कोई एम.ए., इंजीनियरिंग या डॉक्टरी कर पाता है। हर चीज़ के पीछे साधना चाहिए। हर महिला जानती है कि रसोईघर में प्रवेश करने मात्र से पाक-शास्त्र में प्रवीण नहीं हुआ जाता। किसी में भी प्रवीणता प्राप्त करने के लिए निरंतर साधना करनी पड़ती है। जब निरन्तरता बनी रहती है तो प्रत्येक तत्त्व अपना परिणाम अवश्य देता है। माना कि ध्यान करते हैं तब बार-बार चित्त में चंचलता आती है, चित्त भटकने लगता है लेकिन इस कारण ध्यान करना छोड़ा तो नहीं जा सकता। उम्रदराज़ व्यक्ति अगर कहे कि वह चित्त की चंचलता, अस्थिरता के कारण ही ध्यान नहीं करता तो यह शिकायत ही रह जाएगी। जो अपने चित्त को एकाग्र हो चुका है, वह बता सकता है कि उसके चित्त में शांति है, सचेतना, एकाग्रता और जागरूकता है। भले ही उसे अभी आत्मानुभूति नहीं हुई हो पर वह यह तो अवश्य कह सकता है कि उसे शांति, एकाग्रता का अहसास है। उसका चित्त बार-बार खंडित नहीं होता। किसी किसान के मन में पहाड़ पर चढ़ने की इच्छा जाग्रत हुई। उसे पर्वत बहुत आकर्षित करते थे। उसे लगता था कि पहाड़ की चोटी पर से प्रकृति का नज़ारा बहुत सुंदर दिखाई देता है। एक बार ऐसा मौका भी आ गया। वह पहाड़ की तलहटी पर था और चोटी का आकर्षण अधिक था, वहाँ मंदिर भी था। एक दिन अल सुबह अंधेरे में उसने लालटेन ली और घर से चल पड़ा पहाड़ की तलहटी की ओर चलता गया, कुछ दूर जाकर नज़र ऊपर उठाई तो वहाँ पहाड़ तो नज़र ही नहीं आया दिखाई दिया तो घुप्प अंधकार। वह घबराया कि अब क्या करे, कैसे चले, कहाँ पहुँच पाएगा। वह इसी ऊहापोह में था कि उसे दिखाई दिया कि एक बुजुर्ग व्यक्ति उससे भी छोटा दीया लिए चल रहा है। उसके पास आकर उसने पूछा – क्यों भाई, क्या बात है, ऐसे क्यों बैठे हुए हो? उसने कहा- पहाड़ बहुत बड़ा है, अंधेरा घना है और मेरा दीया बहुत छोटा है। बुजुर्ग ने कहा – दीया भले ही छोटा हो लेकिन याद रखो जिसके पास छोटा-सा दीया भी है उसके अगले दस कदम सदा रोशन रहते हैं। जैसे ही तुम पहला कदम उठाओगे तुम्हारे अगले दस कदम फिर रोशन हो जाएँगे। मेरे पास तो तुमसे भी छोटा दीया है फिर भी इस पहाड़ पर चढ़ने का आनन्द कई बार ले चुका हूँ। तुम अंधेरे को और दीये को मत देखो, बस क़दम बढ़ाने शुरू कर दो, तुम्हारे कदम बढ़ेंगे तो हर क़दम रोशन होता जाएगा। यह जीवन का, ज्ञान का दीया भले ही हमें छोटा-सा लगता हो, पर छोटे से दीये से भी हम पार लग सकते हैं। पहले दीया हाथ में तो आ जाए। ये योगसूत्र हमारे हाथ में छोटे-छोटे दीये थमा रहे हैं। ये दीप कोई छोटे न समझना, जीवन को 158/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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