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लघु श्वास । दीर्घ, मध्यम और लघु - जैसे प्रकृति में लहर चलती है कभी तेज, कभी मध्यम, कभी धीमी हवा, वैसे ही हम लोग प्रकृति से अपनी लयबद्धता को जोड़ते हुए अपने प्राणायाम को भी लयबद्ध बनाते हैं । इसके हर चरण में भी ॐ कार को जोड़े रखिए ।
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प्राणायाम दो तरह के होते हैं सबीज प्राणायाम और निर्बीज प्राणायाम | निर्बीज प्राणायाम साधियेगा, पहले सबीज प्राणायाम, अर्थात् ॐकार के स्मरण के साथ प्राणायाम करना सरल रहेगा। हाँ, तो तीन प्रकार से श्वास लेना है दीर्घ, मध्यम और लघु । आपको प्रश्न उठ सकता है कि बीच में मध्यम श्वास क्यों? वह इसलिए कि दीर्घ श्वास के पश्चात् आपको Relexation की ज़रूरत होगी। गहरी दीर्घ श्वास के बाद जब मध्यम श्वास लेंगे तो यह अपने आप रिलेक्सेशन का काम कर देगी। दीर्घ, मध्यम, लघु श्वास का एक चक्र हुआ और कम-से-कम तीन चक्र अवश्य कीजिए । तीन चक्रों में आपको दस मिनट लग जाएँगे। आप चाहें तो इन चक्रों को बढ़ा भी सकते हैं और नौ चक्रों तक इस प्राणायाम को बढ़ा सकें तो यह प्राणायाम चित्त की एकाग्रता के लिए. भीतर के आवरणों को क्षय करने के लिए, ध्यान की पात्रता निर्मित करने में सहयोगी होकर चमत्कार कर सकते हैं। अगर आप नौ आवृत्तियाँ करते हैं तो तीस मिनट तक प्राणायाम होगा। इस प्राणायाम से प्रत्याहार भी सधेगा, इन्द्रियों को अपने-आप में ले चुके होंगे। जब प्राणायाम हो जाए तो तन-मन को ढीला छोड़ दें और प्राणायाम से उत्पन्न ऊर्जा का देह में निरीक्षण करें। तीन - चार मिनट बाद अपनी इन्द्रियों को पूर्ण सचेतनता के साथ अपने मध्य मस्तिष्क की ओर केन्द्रित करने का भाव लाते हैं । महसूस करते हैं, अनुभव करते हैं और देखते हैं । जब बाहर से भीतर आ गए तब अपने अन्तर्घट में उतरेंगे, तब धारणा होगी। एक ध्येय को, लक्ष्य को अपने अन्तर्मन में लेकर अपना ध्यान वहाँ केन्द्रित करेंगे। हो सकता है जहाँ हम ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं वहाँ किसी वृत्ति का उदय हो गया और हमारा चित्त, हमारा ध्यान खंडित हो गया, एकाग्रता भंग हो गई। ऐसा होने पर चित्त को पुनः पुन: अन्तर्मन में लाएँ, धीरे-धीरे हमारी धारणा पकने लगेगी। यह काम एक दिन में नहीं होगा। धीरे-धीरे अभ्यास से संभव होगा। हमारा चित्त उस विषय पर, ध्येय पर एकाग्र होने लग जाएगा । ज्यों-ज्यों भीतर का चित्त, भीतर की एकाग्रता सती जाएगी, भीतर का त्राटक सधता जाएगा त्यों-त्यों ध्यान होगा। ध्यान की अनुभूति हमारे भीतर घटित होगी। ध्यान की निर्मल स्थिति बनेगी। संभव है ध्यान इतना गहरा हो जाए कि जिस बिंदु को लेकर हम ध्यान कर रहे हैं वह सविकल्प समाधि का निमित्त बन जाए।
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